देसी गाओं सेक्स कहानी में मैंने अपनी एक सेटिंग की चचेरी बहन की कुंवारी चूत की सील खोली. मेरी पुरानी सेटिंग ही उसे मेरे पास चुदाई के लिए लाई थी.
दोस्तो, मैं गोविंद चौधरी.
मैंने पिछली सेक्स कहानी
पशु चराते मिली पड़ोसन कुंवारी लड़की की सीलपैक चूत
में आपको बताया था कि मैंने पशु चराते समय अपनी पड़ोसन की सील पैक चूत का उद्घाटन किया था.
उसकी चूत चुदाई के बाद मैंने उसकी गांड भी मारी थी.
अब यह Desi Gaon Sex Kahani दूसरी लड़की की है.
मिलन की एक चचेरी बहन है, जो उसकी पक्की सहेली भी है.
वे दोनों ही आपस में अपनी हर कोई बात एक दूसरे से शेयर कर देती हैं.
उसकी चचेरी बहन का नाम कविता चौधरी था.
(यह बदला हुआ नाम है.)
कविता की उम्र अभी 23 साल है.
मिलन चौधरी ने अपनी अपनी चुदाई की बात अपनी चचेरी बहन कविता चौधरी को भी बता दी थी कि किस तरह से उसने मेरे साथ चुदाई की थी.
यह सब सुनकर कविता का भी मन चुदाई करने का होने लगा था.
वैसे मेरे लंड से चुदने से पहले ही मिलन और कविता आपस में चुदाई की बातें करती थीं.
इस कारण कविता भी मेरे से चुदवाने के लिए तैयार हो गई थी.
वह भी काफी समय से चुदाई के लिए तड़प रही थी और उसे अपनी चुत चुदवाने के लिए कोई भी लड़का मिल नहीं रहा था.
जब मैंने कविता भी सील पैक चूत का उद्घाटन किया था, तब वह 20 साल की थी.
उस वक्त मैंने काफी अच्छे और दमदार तरीके से उसकी चुदाई की थी.
उसी चुदाई की कहानी को आज मैं आप सभी को बताना चाहता हूं!
यह सेक्स कहानी बिल्कुल सच्ची घटना पर आधारित है और इसमें काल्पनिक कुछ भी नहीं है.
मैं आपको पिछली कहानी में तो मिलन चौधरी का परिचय तो दे ही चुका हूं.
आज आगे बढ़ने से पहले मैं आपको कविता चौधरी के बारे में भी बता देता हूं.
कविता चौधरी की उम्र वर्तमान में 23 साल है. उसकी पहली चुदाई के वक्त उसकी उम्र 20 साल थी.
उस समय उसकी चूचियां ज्यादा बड़ी नहीं थीं. लगभग 27-28 इंच की ही थीं.
उसकी हाइट काफी ज्यादा थी.
वह पतली और सुंदर दिखने वाली लड़की थी.
उसके बाल काले घने और गहरे थे, जो अब और मस्त हो गए हैं व उसकी कमर तक लहराते हुए बड़े कामुक लगते हैं.
कविता ज्यादातर समय अपने बाल खुले रखती थी, इससे वह और ज्यादा सेक्सी लगती थी.
मिलन ने उसकी चुत चोदने के लिए तैयार तो कर लिया था लेकिन उसकी चुदाई कहां करे, यह एक बड़ी दिक्कत थी.
उसने मुझसे कहा था कि उसकी एक अन्य सहेली पारो भी आपसे सेक्स करवाने के लिए तड़प रही है.
कैसे भी करके उसकी भी चुदाई करो.
आपसे चुदवाने के लिए आप उससे जहां आने की कहोगे, वह वहां आ जाएगी. रात को, घर में या बाहर या छत पर जहां चाहो, वह वहां आने के लिए तैयार है.
मैंने कहा- ठीक है, मौका देखेंगे.
पर दिक्कत यह थी कि पारो पशु चराने नहीं आती थी.
वह पशु चराते समय दूसरे खेतों में जाती थी जो उनके घर के पास ही था.
हमारा घर दूसरी तरफ था और उसका घर भी थोड़ा सा दूर था.
मेरा परिवार भी काफी बड़ा था और घर में काफी लोग रहते थे, इस कारण घर में तो चुदाई हो नहीं सकती थी.
उसे चोदने के लिए मुझे कोई और तरीका व स्थान देखना जरूरी था.
कविता और पारो दोनों स्कूल जाती थीं तो वे दोनों मेरे घर के पास ही होकर जाती थीं.
हमारे घर के पास ही एक दुकान है, वहां से पारो अक्सर सामान वगैरह लाने जाती थी.
उस समय लॉक डाउन लगा होने के कारण वह दुकान भी बंद ही रहती थी तो उसका आना-जाना लगभग बंद सा हो गया था.
यह बात उसी समय की है, जब पूरे देश में लॉकडाउन लगा हुआ था.
उस समय मैं भी शहर में रहकर पढ़ाई कर रहा था और लॉकडाउन के चलते मैं भी शहर से अपने घर आया था.
शहर से आने के कारण मेरे घर वालों ने सरकारी स्वास्थ्य कर्मियों के निर्देश पर मुझे 15 दिन के लिए घर से दूर बनी एक झोपड़ी के अन्दर रखा था.
मैं वहीं पर रहकर पढ़ने लगा था.
लगभग दस दिन बीते थे कि एक दिन मिलन और कविता दोनों ही किसी काम से खेतों की तरफ गई हुई थीं.
वापस आते समय वे वहीं से आ रही थी हालांकि उन्हें नहीं पता था कि मैं इस झोपड़ी में रहता हूँ.
जब वे सामने से जा रही थीं, तब मैंने उनको देखा और उन्होंने मुझको देख लिया था.
मेरे शरीर में उनको देखते ही एक अजीब सी सिहरन दौड़ने लगी थी.
पैंट में लंड उस समय ही तंबू बन गया था.
मेरा मन कर रहा था कि अभी पकड़ कर दोनों की चूत और गांड फाड़ दूं!
उस समय कविता गुलाबी रंग के सलवार और कुर्ते में थी और बहुत ही सेक्सी और सुंदर लग रही थी.
जबकि मिलन चौधरी उस समय लाल रंग का सलवार और कुर्ता पहनी हुई थी.
हालांकि मिलन थोड़ी सी उदास लग रही थी, पता नहीं क्या कारण था!
उस समय उन दोनों को मैंने करीब बुलाया और उनसे थोड़ी सी बातचीत भी हुई.
मिलन ने तमाम सवाल पूछे कि कब आए थे, कितने दिन हो गए, पढ़ाई कैसी चल रही है आदि!
मैंने भी उन दोनों से पूछा कि इस वक्त कहां जा रही हो और कैसी हो आदि.
उस समय मैंने देखा था कि कविता मीठी मुस्कान के साथ बातचीत सुन रही थी.
मेरी यह झोपड़ी आबादी से काफी दूर थी और इस कारण कोई आस-पास देख भी नहीं सकता था.
उस समय लॉकडाउन में सभी लोग अपने-अपने घरों के अन्दर रहते थे.
उस समय दिन के 12 बज रहे थे.
गर्मी बहुत ज्यादा भयंकर थी ऐसे में कोई देख भी ले, ऐसी स्थिति बिल्कुल भी नहीं थी.
थोड़ी देर बातचीत के बाद वे दोनों चली गईं, लेकिन मेरे शरीर में करंट लगाकर चली गई थीं.
मैंने भी मन ही मन सोच लिया था कि आज कुछ भी हो जाए कविता की चुदाई जरूर करूंगा.
अब बस मैं उनके वापस आने का इंतजार करने लगा था.
वे दोनों लगभग आधा घंटा में वापस आ गईं.
मेरे भी मन में अभी तक उनकी चुदाई के ख्याल ही चल रहे थे कि आज यह अच्छा मौका है क्यों ना इसे यादगार बनाया जाए.
उस समय भयंकर गर्मी पड़ रही थी.
आपको पता ही होगा कि गर्मी में क्या हालत होती है और ऊपर से लू भरी आंधियां चल रही थीं, जिससे आसपास कुछ भी दिखाई नहीं देता था. सिर्फ मिट्टी ही मिट्टी उड़ती रहती थी.
वे दोनों लगभग 12:45 के आसपास वापस आईं और मेरी झोपड़ी के पास आकर मुझसे पूछने लगीं- पानी है क्या … बहुत प्यास लगी है.
उस वक्त मैं अन्दर बैठा था.
मैंने कहा- हां अन्दर आ जाओ और पानी पी लो!
मेरी यह झोपड़ी सब तरह से आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित थी.
इसमें लाइट पंखा और कूलर सब थे.
वे दोनों झोपड़ी के अन्दर आ गईं.
मैंने देखा कि मिलन और कविता दोनों काफी खुश दिख रही थीं.
चूंकि मिलन तो मेरे लंड का स्वाद चख चुकी थी इसलिए उसे मालूम था कि कैसा मजा मिलने वाला है.
मगर कविता तो मिलन से मेरे लंड की तारीफ सुनकर उसे पाने के लिए बेचैन थी और उसके चेहरे पर उसी बात की खुशी झलक रही थी.
फिर उन्होंने पानी पिया और हम तीनों ने बैठ कर कुछ देर इधर उधर की बातचीत की.
बातचीत में मैंने मिलन को वही पुरानी चुदाई की बात याद दिलाने की कोशिश की किस तरह से मैंने मिलन को घोड़ी बनाया था.
उन दोनों में चुदने की चाहत तो थी लेकिन स्त्रीसुलभ लाज के चलते दोनों ही सेक्स की बात से कुछ कुछ संकोच सा करती दिख रही थीं.
एक बार तो मिलन ने साफ मना कर दिया कि हम दोनों तो बस ऐसे ही मिलने आए हैं.
उसकी इस बात को सुनकर मैंने उससे स्पष्ट कहते हुए याद दिलाया कि तुमने कहा था ना कि कविता भी मेरे लंड से चुदवाना चाहती है!
यह सुनकर वे दोनों शर्माने लगीं.
अब मिलन और कविता दोनों ही चाहती थीं कि उन्हें मेरे लौड़े से चुदवाना है, तो वे चुदाई के नाम पर हंसने भी लगी थीं.
फिर मिलन बोली- यहां पर आज दिन में कोई आ गया तो कोई दिक्कत न हो जाए?
मैंने कहा- कोई नहीं आएगा, तुम दरवाजा बंद कर दो.
यह सुनते ही मिलन ने उठ कर दरवाजा बंद कर दिया.
दरवाजा बंद करके वह झोपड़ी के एक कोने में जाकर खड़ी हो गई और मेरी तरफ देख कर मुस्कुराने लगी.
मैंने उसके करीब जाकर उसके एक कंधे पर हाथ रखा तो वह मुझसे छूटने की कोशिश करने लगी.
वह धीरे से बोली- कविता से मिल लो पहले!
मैंने ओके कहा और वापस कविता की तरफ आ गया.
मेरी झोपड़ी में सिर्फ एक ही चारपाई थी उस पर कविता बैठ गई थी.
कुर्सी पर मिलन बैठ गई.
अब मैंने चारपाई पर बैठ कर कविता को अपनी तरफ खींचा और उसे अपनी बांहों में भर लिया.
वह भी मेरी तरफ खिंचती चली आई तो मैंने उसे उठा कर अपनी गोदी में बैठा लिया.
उसकी नर्म मुलायम गांड मेरे लंड पर रगड़ खाने लगी.
मैं अपने हाथों से उसके दोनों बूब्स मसलने लगा.
उसके बूब्स बहुत छोटे और कड़क थे. शायद अभी किसी ने टच भी नहीं किए थे.
उस वक्त कविता के दूध बमुश्किल 27 इंच या 28 इंच के रहे होंगे.
हमारे गांव की बोली में इतने छोटे दूध को टबुए कहा जाता है.
मैं उसके गाल को चूमता हुआ काफी देर तक उसके दोनों बूब्स मसलता रहा.
इसके बाद मैंने उसकी सलवार के अन्दर हाथ डाला और उसकी चूत में उंगली करने लगा.
वह अपनी सील पैक चुत में उंगली करने से अपनी गांड उछालने लगी और मेरे से दूर भागने की कोशिश करने लगी थी.
लेकिन मैंने अपने दोनों पैरों से उसे अच्छी तरह से जकड़ रखा था.
कुछ देर तक चुत कुरेदने के बाद वह भी काफी गर्म हो गई.
मैंने अब उसको चारपाई पर लेटा दिया और मिलन पास में कुर्सी पर बैठी बैठी हमारी चुदाई देख रही थी.
मैंने उसे इशारा किया कि आ जाओ, तीनों एक साथ चुदाई का मजा लेते हैं.
लेकिन तभी कविता ने कहा- उसे काम नहीं करना है!
मैं समझ गया कि इसकी चुत से माहवारी का खू/न टपक रहा है.
इसलिए वह हम दोनों के साथ हो रही चुदाई में में भाग नहीं ले सकती थी.
मिलन बस एक कोने में उदास बैठी थी.
अब मैंने बिना देर करते हुए कविता की सलवार को उतार दिया तो देखा कि उसके हरे रंग की पैंटी पहनी हुई थी, जो पूरी भीग गई थी.
हालांकि हम लोग सुनसान जगह पर बनी झोपड़ी में सेक्स कर रहे थे, इस कारण ज्यादा देर नहीं सकते थे.
इसी कारण मैंने कविता की सीधी चुदाई करना ही बेहतर समझा.
मैंने उसकी पैंटी उतार दी और खुद भी अपनी पैंट व चड्डी उतार कर नंगा हो गया.
कविता ने पहली बार किसी का लंड देखा था, तो वह सहम गई थी.
क्योंकि मेरा लंड लगभग 8 इंच लंबा था और 3 इंच मोटा भी था.
यह भीमकाय लंड किसी रंडी की चूत भी फाड़ने की क्षमता रखता था.
मिलन इससे भली भांति परिचित थी क्योंकि उसको भी 4-5 दिन तक चूत और गांड में भयंकर दर्द हुआ था.
कविता शर्म से मर रही थी.
उसने अपने हाथों से अपने मुँह को छुपा लिया था.
मैंने बिना देरी करते हुए अपने लंड पर थूक लगाया और उसकी एकदम से गोरी और छोटी सी चूत पर लंड को रगड़ने लगा.
काफी देर लंड को रगड़ने के बाद मैंने थोड़ा सा जोर लगाया तो पहली बार में लंड चुत से फिसल गया.
दोबारा धक्का लगाया तो दोबारा भी फिसल गया मगर इस बार लौड़े ने अपनी ठनक चुत को दिखा दी थी, जिससे कविता सहम गई थी.
फिर तीसरी बार में मैंने चूत के छेद पर लंड को सैट किया और धीरे-धीरे धक्का लगाना शुरू किया.
उसकी चूत बहुत छोटी थी तो उसे भयंकर दर्द होने लगा.
मैंने उसके दर्द की परवाह न करते हुए उसका मुँह बंद किया और अपना आधा लंड अन्दर घुसेड़ दिया.
वह रोने लगी थी, तो मैं जरा देर के लिए रुक गया और उसे चूमने लगा.
जब थोड़ी देर बाद वह सामान्य हुई तो मैंने दूसरे धक्के में अपना पूरा लंड उसकी चूत में डाल दिया.
उसकी चीख निकल गई और वह रोने लगी.
तभी मिलन ने करीब आकर कविता के मुँह पर हाथ रख दिया और मुझे चुदाई जारी रखने को बोला.
कविता की चूत बहुत ज्यादा टाइट थी इस कारण मुझे भी दर्द हो रहा था.
मैंने लंड बाहर निकाल कर उस पर ढेर सारा तेल लगाकर वापस एक ही झटके में अन्दर डाला तो चिकना होने के कारण वह सीधा ब/च्चेदानी से जा टकराया था.
कविता ‘ऊऊ ईईई मर गई मम्मी रे!’ की आवाज निकाल कर सुबकने लगी थी.
मैं जोर जोर से धक्के मार रहा था.
उसकी चुत चिकनी हो गई थी तो लंड सटासट अन्दर बाहर होने लगा था.
पूरी झोपड़ी थप थप की आवाज से गूंज उठी थी क्योंकि मेरे आंड और गांड उसकी चूत से जोर जोर से टकरा रही थी.
लगभग दस मिनट तक पहला दौर चला और मैंने अपना वीर्य उसकी चूत में ही छोड़ दिया.
मैं उसके ऊपर ही लेट गया.
तब मिलन ने उसके मुँह से हाथ हटा लिया.
वह जोर जोर से सांस लेने लगी और उसने मुझे धक्का देकर अपने ऊपर से हटा दिया.
कविता खड़ी होकर कपड़े पहनने की कोशिश करने लगी थी.
लेकिन दर्द से तड़प रही थी, इस कारण वापस बैठ गई.
वह बोली- मुझे अब और नहीं करवाना है!
उसका मुँह लाल हो चुका था तथा चेहरे का रंग उड़ गया था.
मैंने उसे पानी पिलाया तब जाकर वह थोड़ी सी सामान्य हुई लेकिन पसीने से तरबतर हो गई थी.
उसके बाद मैंने उसे लिटा दिया और उसी पोजीशन में मैंने पीछे से उसकी चूत में वापस से लंड डालकर दूसरा राउंड शुरू कर दिया.
इस बार उसे दर्द कम हुआ.
मेरी यह वाली चुदाई पंद्रह मिनट तक चली.
इस बार कविता को मजा तो आया था लेकिन उसकी हालत गंभीर बन गई थी.
इस कारण से मुझे भी दया आ गई थी और उसकी गांड मारने की मेरी इच्छा मेरे मन में रह गई थी.
उसके बाद मैंने और मिलन ने कविता को कपड़े पहनाए.
पीरियड में होने के कारण मैं मिलन की चुदाई नहीं कर सका था.
मैंने उन्हें जाने दिया.
जाते वक्त मैंने अपने पास रखी बुखार की दवा कविता को दे दी थी कि यदि दर्द या बुखार आए तो यह दवा खा लेना.
उसके दो दिन बाद मिलन अकेली आई और मुझे दो बार चुदी.
उसने बताया कि कविता को बुखार आ गया था लेकिन वह अब ठीक है और कल आएगी.
दूसरे दिन मैंने कविता की चुत चुदाई की और उसे गांड मरवाने के लिए भी राजी कर लिया.
अब वे दोनों मुझसे बेखौफ चुदवाने आने लगी थीं.
इस तरह से मैंने तीन साल तक मिलन और कविता की अलग अलग जगह अलग अलग पोजीशन में उनकी चूत और गांड जमकर मारी थी.
अब कविता के बूब्स 32 के हो गए हैं चूत और गांड के छेद इतने बड़े हो गए हैं कि 2 लंड एक साथ आराम से अन्दर आ सकते हैं.
अभी इसी महीने उसकी शादी भी हुई है और इसी महीने वापस अपने मायके आने वाली है.
उसने मुझसे फोन पर कहा है कि वह मुझसे चुदने जरूर आएगी.
अगर वह मेरे पास आती है और अपनी सुहागरात की कहानी बताएगी तो मैं उसे भी आप लोगों को सुनाऊंगा.
आपको यह देसी गाओं सेक्स कहानी कैसी लगी है, अपना फीड बैक मेरी मेल आईडी पर दे सकते हैं.
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