हॉर्नी क्वीन सेक्स कहानी दो ढाई सौ साल पुरानी है. एक महाराजा चुदाई का शौकीन था. वह हरम में नई नई लौंडियों को चोदता था पर अपनी महारानी की चुदाई नहीं करता था. रानी को लंड की जरूरत थी.
पंजाब में एक राज घराना, जिसका महाराजा यशवन्त प्रताप।
55 साल का कसरती शरीर का मालिक। बड़ी मूंछें, बड़ी आंखें, अखाड़े में चार लोगों को अकेला धूल चटाने की क्षमता रखने वाला।
पर औरतों को अपनी शिकार बनाने वाला।
उनकी महारानी रत्नावती, उम्र 45 की, पर तन 30 का!
एक अद्वितीय शरीर की मालकिन।
प्यारा मन, प्यारा तन, समझदार और समय सूचक दिमाग रखने वाली महारानी।
उसे महाराज के औरतों के शिकार की जानकारी थी।
उनकी ननद, मतलब महाराजा की बहन कुसुम।
उम्र 35 साल, दिखने में हीरा।
एक बार देखने वाला उसे अपने सपनों में बार-बार देखता होगा।
शादी हो गई है और अपने ससुराल में अपना संसार चला रही है।
पर आए दिन अपने मायके आने का ख्याल आता है, पर क्यों आता है, ये आपको पता चल जाएगा।
राजा यशवन्त की तीन संतान थी दो राजकन्याएं और एक युवराज।
एक का नाम पुष्पलता, उम्र 20 साल, तो दूसरी हेमलता, उम्र 19 साल, और युवराज हंसराज।
तीनों दिखने में अपनी मां पर गए हैं — सुंदर, कामुक और समझदार।
अब आते हैं Horny Queen Sex Kahani पर!
यशवन्त महाराजा ने अपने घर की महारानी को कभी-कभार और बाहर की औरतों को ज्यादा प्यार करता था।
इसी कारण महारानी बीमार रहने लगी।
तभी वैद्यराज को बुलाया गया।
रानी अपने पलंग पर सोई थी।
पलंग के चारों ओर जाली थी, जिसके रहते अंदर का बाहर कुछ नहीं दिखता था।
उस कक्ष में पलंग पर महारानी, बाहर महाराजा, उसके बच्चे, प्रधान और काम करने वाली सेविकाएं थीं।
वैद्य ने पूछा, “क्या समस्या है, महारानी?”
तब अंदर से आवाज आई, “बदन ठंडा पड़ रहा है।”
तब वैद्य दिनाकर बोला, “महारानी, मैं अपना हाथ अंदर देता हूं, आप अपनी नब्ज मेरे हाथों में दीजिए।”
अंदर से ‘हम्म’ की आवाज आई।
वैद्य दिनाकर ने अपना हाथ अंदर डाला।
रानी रत्नावती वासना की भूखी थी।
उसने उनके हाथ को पकड़कर सीधे अपने भरे हुए चूचों पर रख दिया।
वैद्य दिनाकर को झटका लगा क्योंकि महारानी ने चोली नहीं पहनी थी या चोली के हुक खोलकर रखे थे।
तो नंगे चूचों का स्पर्श पाकर वैद्य दिनाकर को झटका लगा।
ये देख सब लोग वैद्य को देखने लगे।
तब बात संभालते हुए दिनाकर बोले, “बदन तप रहा है। मैं फिर से देखता हूं।”
ऐसा बोल वैद्य दिनाकर ने फिर से अपना हाथ अंदर डाला।
रानी ने फिर से उसके हाथ को पकड़ा और अपने स्तनों पर रखा, अपने चूचों के दानों के ऊपर घुमाया, फिर धीरे-धीरे पेट पर ले गई।
अपने पेट के नाभि में उसकी उंगली घुसाई, फिर धीरे-धीरे महारानी ने हाथ को अपनी चूत पर रख दिया।
वैद्यराज दिनाकर को झटका लगा, पर आसपास सब लोग थे।
वो सामान्य रहा और महारानी की चूत पर हाथ फेरा और चूत के फांकों को अलग कर अपनी बीच की उंगली चूत के अंदर सरका दी।
रत्नावती ने सुकून से आह भरी।
कुछ देर तक दिनाकर उंगली से महारानी की चूत को चोदता रहा।
कुछ देर बाद दिनाकर वैद्य ने अपनी उंगली बाहर निकाल ली, अंदर ही महारानी के कपड़े से पोंछी और हाथ बाहर कर लिया।
और फिर महाराजा को बोला, “रानी की तबीयत बहुत ज्यादा खराब है। उन्हें तकलीफ हो रही है। मैं उनका इलाज करूंगा, पर इलाज कठिन है। मैं जब इलाज करूं, तब मुझे उन्हें मेरी देखरेख में रखना होगा। इसका इलाज करते समय महारानी को तकलीफ होगी, वो चिल्लाएंगी, अजीब आवाजें निकालेंगी, पर इस कक्ष में कोई नहीं आएगा। वो मेरी दवा का असर होगा। मेरी पूरी विद्या इस इलाज में मैं लगा दूंगा, महाराज। दवा का असर खत्म होते ही मैं खुद आपको उनसे मिलने की इजाजत दूंगा। तब तक इस कक्ष का दरवाजा बंद होगा। बोलिए, महाराज, क्या हुकूम है?
राजा ने सोचा, फिर बोला, “दिनाकर, तू इलाज तुरंत कर दे। सब लोग बाहर जाओ।”
और यशवन्त भी बाहर गया।
फिर दिनाकर ने दरवाजा बंद कर महारानी के पलंग के पास गया और महारानी के पलंग का परदा हटा दिया।
रानी आंखें बंद किए सोई थी।
दिनाकर ने उनके बालों में हाथ घुमाया, उनके गालों को सहलाया, अपनी एक उंगली उसके होंठों पर घुमाई, तो तुरंत महारानी ने इस उंगली को अपने होंठों में दबा ली और उसपर अपनी जीभ फेरने लगी।
आंखें बंद किए वो उंगली को चूसने लगी।
दिनाकर का लंड उसके धोती में ही खड़ा होने लगा।
यहां महारानी की चूत भी पानी छोड़ चुकी थी।
अब महारानी ने होंठ खोले, आंखें खोली, दिनाकर को हाथ पकड़कर अपने पास बिठाया।
उसे अपने बिस्तर पर लिटाया और उसके ऊपर लेटकर उसके होंठों का रसपान करने लगी।
बहुत सालों की भूखी शेरनी को आज शिकार मिला था।
दिनाकर भी महारानी की राजशाही गुफा में अपने नाम का झंडा गाड़ने के लिए तैयार था।
रानी ने चूमते-चूमते अपना एक हाथ दिनाकर की धोती में डाल दिया।
उसके लिंग को हाथ लगते ही उसे एहसास हो गया कि उसने सही आदमी का चुनाव किया है।
दिनाकर का हथियार दमदार था और अपने पूरे आकार में आ चुका था।
रानी पर वासना छाई थी।
उसे एक ऐसे आदमी की या ऐसे लंड की तलाश थी जो उसकी तन की आग को बुझा सके।
और दिनाकर का लिंग नहीं, लिंगों का महाराजा था — ये महारानी ने उसे हाथ में पकड़ते ही समझ लिया था।
रानी उठ खड़ी हुई और दिनाकर को धक्का देकर महारानी-पलंग पर गिरा दिया।
फिर महारानी उस पर टूट पड़ी, उसके कपड़े उतार फेंके, कुर्ता कहीं, तो धोती कहीं।
बनियान भी निकाल फेंकी।
दिनाकर ने लंगोट नहीं पहना था तो वो पूरा नंगा हो चुका था।
लेटे-लेटे महारानी को देख रहा था।
रानी किसी जन्म-जन्म की भूखी शेरनी की तरह उसे नंगा कर खाने के लिए उतावली हो रही थी।
वह दिनाकर की कमर पर जा बैठी और अपने कपड़े उतारने लगी, एक-एक कर सारे कपड़े उतार दिए।
अब हाल ये था कि महारानी सीधे दिनाकर के लंड पर सवार थी।
रानी झुककर दिनाकर के होंठों का रसपान करने लगी।
दिनाकर ने भी महारानी के नरम-नरम होंठों का कब्जा लिया।
दीर्घ चुम्बन की क्रिया चालू हुई।
दिनाकर ने महारानी के दोनों चूचों को रगड़ा, मसला।
उसने किशमिश जैसे स्तन बिंदुओं को दो उंगलियों में पकड़कर दबा-दबाकर खींचा, चूसा।
रानी इस क्रिया से पागल हो चली थी।
रानी की सिसकारियां निकलने लगीं, आवाज बाहर तक जाने लगी।
राजा यशवन्त होशियार था। उसे महारानी की सिसकारियां भली-भांति ज्ञात थीं।
राजा वहां से अकेला निकल गया और ऐसी जगह पहुंचा, जहां से महारानी के महल के अंदर देख सके।
रानी महल का एक झरोका महाराजा के महल से लगा था।
राजा ने उस झरोके को थोड़ा खोला और अंदर झांक तो पाया कि महारानी नंगी, नंगे वैद्य दिनाकर के ऊपर चढ़ी थी और उस पर झुकी थी।
राजा को ये देख गुस्सा आया, पर करता क्या? महारानी की इज्जत का खयाल करके महाराजा ने झरोखा बंद कर दिया।
राजा ने कुछ सोचा और बाहर आ गया।
उसने दो सेवकों को बोला, “हम बाहर जाकर आते हैं। हमारे आने तक वैद्य दिनाकर को रुकने के आदेश दो।”
और बाहर निकल गए।
बाहर जाकर वो सीधे दिनाकर के घर पहुंचे।
राजा के साथ उसका एक राजदार मंत्री और चार सैनिक थे।
राजा को देख दिनाकर की बीवी खुश भी हुई और उसे डर भी लगा कि ये यहां क्यों आए।
राजा ने मंत्री और सैनिकों को बाहर ही खड़े रहने का आदेश दिया और महाराजा दिनाकर के घर में घुस गया।
दिनाकर की बीवी भी एकदम अप्सरा थी — पतली कमर, तिरछी नजर, रसीले होंठ, कातिल नजर।
राजा उसे देख खुश हुआ।
उसने महाराजा का स्वागत किया, जलपान कराया।
फिर महाराजा ने उसे अपने करीब बुलाया और उसे उठाकर सोने के कमरे में ले गया।
राजा की गोद में उठने से वो शरमा गई, घबरा गई, पर चुप रही।
राजा ने उसे खटिया पर सुलाकर उसके कपड़े उतार दिए और उस पर चढ़ गया।
दूसरी तरफ महल में महारानी ने दिनाकर के लंड को अपने हाथ से पकड़कर अपनी चूत के मुंह पर रखा और उस पर बैठती चली गई, जब तक दिनाकर के लंड ने उसके चूत के आखिरी छोर को नहीं छुआ।
पर महारानी की चूत ने बरसों बाद किसी का लंड अंदर लिया था, तो जाकर आधे में अटक गया।
अब एक मर्दानी ताकत की जरूरत थी जो महारानी नहीं लगा सकती थी।
दिनाकर महारानी की दुविधा समझकर उसने महारानी को कसकर पकड़ा और नीचे से लंड को ऊपर, मतलब महारानी की चूत में धकेल दिया।
लंड ने महारानी की चूत के अंदर आखिरी छोर को, मतलब बच्चेदानी को चोट की।
रानी की चीख निकल गई।
भारी-भरकम लंड जैसे महारानी की चूत में फंस गया था, अटक गया था।
कुछ देर शांत रहने के बाद महारानी ने उसके लंड पर कूदना आरंभ किया।
रानी ऊपर होते ही लंड महारानी की चूत की दीवारों को घिसते हुए बाहर आता, तो लंड का चमड़ा लंड को बंद कर देता।
और जैसे महारानी लंड पर बैठती, लंड का चमड़ा चूत की दीवारों को घिसता हुआ लंड को आगे कर पीछे हो जाता।
रानी लंड पर बड़े मजे से कूद रही थी।
साथ ही वो मादक सिसकारियां निकाल रही थी।
दिनाकर भी कभी उसके चूचे मसलता, कभी महारानी की कमर पकड़ लेता।
रानी की चूत ने रस छोड़ना आरंभ कर दिया।
दिनाकर का लंड भी आराम से राजशाही चूत में आराम से अंदर-बाहर हो रहा था।
कुछ देर बाद दिनाकर ने महारानी को नीचे पटका और खुद ऊपर आ गया।
रानी को पीठ के बल सुलाकर महारानी के पैरों को ऊपर हवा में लटका दिया और अपना लंड महारानी की चूत में डाल दिया और धक्के लगाने लगा।
ऐसे चुदाई के देर-देर बाद में महारानी के रोएं-रोएं खड़े हो गए।
रानी ने अपनी आंखें सफेद कर लीं।
रानी ने दिनाकर के भुजाओं में अपने नाखून गाड़ दिए और “आह्ह ह्हह्ह ह्ह” की गूंज से महारानी बेहोश-सी लगी।
रस चूत में ही फैलता गया, बाहर आने को रास्ता ही नहीं था।
दिनाकर का लंड महारानी की चूत में रास्ता रोक खुदाई कर रहा था।
रानी मदहोश हालत में बोल रही थी, “बस्स्स, बस्स, बस्स!”
आखिरकार चूत में चिकनाई बढ़ी, लंड ने भी अपनी जगह बना ली।
दिनाकर ने और जोर से चुदाई चालू की।
रानी फिर लय में आई।
इस बार दिनाकर ने महारानी के पैर फैलाए, उसके बाजुओं को अपने गले में डाल लिया, उसकी कमर को पकड़ा और खड़ा हो गया।
अब महारानी वैद्य दिनाकर की कमर पर चढ़ उसके लंड पर बैठी थी।
दिनाकर चूत का खिलाड़ी था, वह खड़े-खड़े ही उछाल-उछालकर महारानी को चोदने लगा।
रानी को लंड के झटके अपनी नाभि में महसूस हुए।
“अ अह अअ” करते-करते महारानी चुद रही थी।
“ठप ठप” की आवाज भी गूंज रही थी।
रानी की चूत फिर कस गई, उसकी आंखें फिर सफेद हुईं।
अबकी बार महारानी ने नाखून दिनाकर की पीठ में गाड़ दिए।
दिनाकर भी आखिरी पड़ाव में था, उसने महारानी को अपने लंड पर दबाकर रखा और दोनों ने वीर्यदान कर दिया।
तब दिनाकर का लंड महारानी की चूत में किसी पिचकारी की भांति झटके खा-खाकर खाली हो रहा था।
दिनाकर ने महारानी को अपने गले से कसकर लगा रखा था।
रानी ने दिनाकर की गर्दन में अपने दांत गड़ाए थे।
आखिरकार महारानी का शरीर शीतल हो गया।
दिनाकर का पानी पाकर महारानी किसी फूल की भांति महक रही थी।
उनके मुख पर खुशी की मुस्कान थी।
दिनाकर ने महारानी को ससम्मान पलंग पर रखा, अपना लंड निकाल लिया, उनके पैरों को पलंग पर रखा।
रानी की चूत से आ रहे दोनों के मिश्रित वीर्य को कपड़े से पोंछा।
एक नजर महारानी को देखा और उसे गर्व हुआ कि उसने इस देश की महारानी को चोदा।
हॉर्नी क्वीन सेक्स का मजा लेने के बाद दिनाकर को लेकर नहाने के कक्ष में गई।
वहां दोनों ने स्नान किया, बाहर आए।
रानी ने अपने हाथों से दिनाकर को कपड़े पहनाए।
ये राजशाही ठाठ दिनाकर को कभी नसीब नहीं हुए थे।
दोनों तैयार हो गए।
तब तक महाराजा ने दिनाकर की बीवी को दो बार पेला और वापस महल आ गए।
राजा ने अपना रानी की चुदाई का बदला लिया था।
पर दिनाकर की बीवी को कुछ खबर नहीं थी कि असल में महाराजा ने उसे क्यों पेला।
ये दिनाकर को भी पता नहीं था।
राजा ने दिनाकर की बीवी को सोने का हार भेंट किया, इससे वो ज्यादा खुश थी।
राजा के आने के बाद दिनाकर महारानी महल से बाहर आया था।
राजा ने उसे भी पुरस्कार दिया और विदा किया।
हॉर्नी क्वीन सेक्स कहानी किसी लगी?
मुझे मेल और कमेंट्स में बताएं.
धन्यवाद।