इस चुत की प्यास बुझती नहीं- 1

मेरी अन्तर्वासना की कहानी में पढ़ें कि मेरी चूत की आग ने मुझे किस किस से चुदवा दिया. पहले तो मैंने अपनी वासना अपनी बुआ के बेटे से शांत की. फिर …लेखिका की पिछली कहानी: ग़ैर मर्द से चुदाई की हसीन रात

हैलो फ्रेंड्स, मैं 36 साल की हूँ और मेरा नाम रूपा है. मैं शादीशुदा हूँ और एक लड़के की मां भी हूँ.
मैं सरकारी नौकरी करती हूँ और एक उच्च पद पर कार्यरत हूँ. मेरा पति अपना व्यापार करता है और उसको अपने काम के सिलसिले में आम तौर पर बाहर जाना होता रहता है.

दोस्तो, इससे पहले मैं मेरी अन्तर्वासना की कहानी आगे कहूँ, मैं खुद के बारे में पहले कुछ बता दूं.
इस कहानी को सेक्सी आवाज में सुनें.

मेरी हाइट 5 फुट 5 इंच है. कमर 28 इंच की है और मम्मे 38 इंच व चूतड़ 40 इंच के हैं. मेरे जिम में सबसे आकर्षक मेरे मम्मे और गांड का उभार ही हैं. मैं एक बड़ी वाली चुदक्कड़ औरत हूँ. मुझे बिना अपनी चुत में लंड लिए नींद ही नहीं आती है.

मेरे पति का लंड मस्त है और वो मेरी चुत को पूरा खुश करके रखता है. मगर जब वो बाहर चला जाता है, तो मैं अपनी बुआ के लड़के को बुला कर उससे अपनी चुत की सेवा करवाती हूँ.

वो मेरे घर के पास ही रहता है और पति होते हुए भी उसका घर पर आना जाना लगा रहता है. क्योंकि वो मेरी रियल बुआ का लड़का है, इसलिए किसी को भी मेरे उसके साथ चुदाई के रिश्ते का पता नहीं है.
सभी की नजरों में वो मेरा भाई है और वो मुझसे राखी भी बंधवाता है.

मेरी शादी लव मैरिज है क्योंकि मेरा पति हमारी बिरादरी से नहीं है.
इसलिए मेरे मां-बाप ने शादी की ना कर दी. जब उनको पता लगा कि मैं इसी लड़के से शादी करने वाली हूँ, तो उन्होंने साफ़ कह दिया- जाओ तुम्हें जो करना है करो, मगर हमारे लिए हमारी बेटी आज से मर गई है.

मेरे पति के परिवार वालों की भी कुछ इसी तरह की ज़िद थी, मगर उन्होंने लड़के के आगे अपनी हार मान कर हां कर दी.
मैं अब किसी की कोई बात सुनने के लिए तैयार नहीं थी, इसलिए हम दोनों ने कोर्ट मैरिज कर ली.

पति का नाम अशोक है और मेरी उससे मुलाकाल ऑफिस में किसी काम के सिलसिले में हुई थी.

जैसा कि मैंने बताया है कि मैं एक सरकारी ऑफिस में वरिष्ठ अधिकारी के पद पर हूँ और वो मुझसे मेरे ऑफिस में अपने किसी काम के चलते मुझसे मिला था.
उसका काम कुछ ऐसा था कि उसके ऑफिस का निरीक्षण करना जरूरी था.

उसने कहा- मेम, आप जब चाहें निरीक्षण कर लें.
मैंने कहा- ठीक है, मैं कल ही आती हूँ.

अगले दिन मैं नियत समय पर पहुंच गई और निरीक्षण के बाद जब वापिस जाने लगी.
तो उसने मुझे एक अपने ऑफिस की डायरी उपहार स्वरूप दी.

मैंने उस डायरी को अपने पर्स में रखा और रख कर भूल गई.

जब घर आकर पर्स खोला तो डायरी नजर आई. उसे जैसे ही खोला तो उसमें से एक लिफाफा निकला, जिसमें 10000 रूपए थे.
मैंने सोचा कि इस समय कुछ भी कहना उचित नहीं होगा, समय पर उससे बात करूंगी.

दो दिनों बाद अशोक ऑफिस आया और मुझसे मिला.
मैंने उससे कहा- तुम्हारा काम हो चुका है और तुमको स्वीकृति पत्र एक दो दिनों में मिल जाएगा.

उसने पूछा- मेम, यदि आज शाम तक आप लेटर दिलवा देंगी, तो आपकी बहुत मेहरबानी होगी.
मैंने मुस्कुरा कर कहा- ठीक है शाम को आ जाना.

शाम तो वो आया और मैंने उसको उसका लेटर बार जाकर क्लर्क से लेने के लिए कह दिया.

लेटर लेने के बाद वो वापस मेरे रूम में आया.
उस समय मैं अपने घर वापिस जाने की तैयारी में थी. मैं चपरासी से बोल रही थी कि वो ऑटोरिक्शा ले आए.

अशोक को आते देख कर मैंने चपरासी को इशारा किया- अभी रूको.

फिर अशोक से पूछा- बोलिए अब क्या बात है?
उसने झिझकते हुए कहा- मेम आप मेरी बात का कोई उल्टा मतलब ना निकालिएगा क्योंकि किसी लेडी ऑफिसर के साथ बहुत सोच कर बोलना पड़ता है.

मैंने कहा- बोलो, अगर मुझे गुस्सा भी आया तो भी कुछ नहीं कहूँगी.
अशोक- ठीक है मेम आप मेरे साथ चलिए, मैं आपको घर तक छोड़ दूंगा और यकीन मानिए आपको घर पहुंचने में कोई देर नहीं लगेगी.

मैंने बिना कुछ कहे चपरासी से कहा- ऑफिस का रूम बंद कर दो, मैं खुद ही ऑटो ले लूंगी.
मैं उसके साथ ऑफिस से बाहर आ गई.

जब मैं बाहर आ रही थी, तब मेरा ध्यान उसके शरीर पर गया. वो लगभग 6 फुट लंबा था और उसका शरीर काफी गठीला था. मुझे वो बहुत आकर्षक लगने लगा.

बाहर निकल कर वो बोला- प्लीज़ मेम, आप मेरा इंतजार कीजिए, मैं अपनी कार पार्किंग से लेकर आता हूँ.

अब मैं उसको किसी और नजर से देख रही थी और उसको अपनी तरफ आकर्षित करना चाहती थी. मुझे यह भी पता था कि अब इससे काम के सिलसिले में आगे कोई और मुलाकात नहीं होगी.

अभी मैं अपने ख्यालों में डूबी हुई थी और इससे पहले कि मैं कुछ और सोच पाती, अशोक ने मेरे पास आकर कार का हॉर्न बजा दिया.
मैं कार में बैठ गई.

वो बोला- मेम अगर आपकी जगह कोई पुरुष अधिकारी होता, तो मेरा काम इतनी जल्दी नहीं होता. मुझे ना जाने कितने ही चक्कर लगाने पड़ते. शायद यह हमारी आखिरी मुलाकात होगी, इसलिए मैं चाहता हूँ कि आपके साथ एक कप कॉफी पी लूं.
मैंने कोई उत्तर नहीं दिया और मुस्करा कर अपनी हामी दे दी.

कॉफी पीने के बाद उसने एक लिफाफा निकाल कर मेरी तरफ रखा और बोला कि देखिए इन्कार ना कीजिएगा.

मैंने उस लिफाफे पर अपने पर्स से उसी का पुराना लिफाफा निकाल कर रखते हुए कहा कि यह आपकी अमानत है और आपके ही काम आनी चाहिए. इसलिए इन्हें अपने पास रखिएगा. जिंदगी पता नहीं कितनी लंबी है, फिर ना जाने कब और कहां मुलाकात हो जाए.

वो मेरी तरफ देखता ही रह गया और दोनों लिफाफों को अपने पास रखते हुए बोला- मैडम, मैं अपने जीवन में कुछ भी भूल जाऊं, मगर आपको कभी नहीं भूलूंगा. वो बहुत खुशनसीब होगा, जिससे आपकी शादी होगी.
मैंने कहा- पता नहीं कि आने वाले कल में क्या लिखा है.

वो मुझे घर तक छोड़ गया और बोला- मैं आपके घर में नहीं आऊंगा. वरना कोई कुछ भी कह सकता है.

मैं बिना जवाब दिए उसको बाय करते हुए अपने घर चली गई.

कुछ दिनों बाद उसका फोन आया- मैडम जिस काम की परमीशन ली थी, वो पूरा हो गया है और मुझे उसकी शुरुआत आपसे ही करवानी है, इसलिए आप अपनी रज़ामंदी दें और जो भी समय आपके लिए उचित हो दे दीजिए.
मैंने कहा- कोई भी समय, जिस दिन ऑफिस की छुट्टी हो, मुझे सूट करेगा.

उसने कहा- तो फिर ठीक है, कल शनिवार है और आपकी भी छुट्टी होगी. क्या दोपहर 12 बजे का समय ठीक रहेगा?
मैंने कहा- हां ठीक है.

तब उसने कहा- मैडम बुरा ना मानिएगा, मैं 11.30 आपके घर अपनी कार भेज दूंगा ताकि आपको कोई आने में प्राब्लम ना हो.
मैंने कहा- ठीक है.

घर आकर मैं कुछ सोच में पड़ गई कि कल किस तरह की ड्रेस डाल कर जाऊं, जिससे मैं उसको अपनी तरफ आकर्षित कर सकूं.

बहुत सोच विचार कर मैंने एक लो-कट ब्लाउज और एक ऐसी ब्रा पहनी, जो मेरे मम्मों के निप्पलों को मुश्किल से ढक पाए और नीचे से पूरी तरह से मम्मों को उठा कर कसे रहे ताकि मेरे दूध उठे रहें. अगर कोई जरा भी नजर मेरे मम्मों डाले, तो उसकी आंखों में मेरे दूध अपना जलवा दिखा दें.

मेरा सारा ध्यान इसमें ही था कि अगर मैं उसके आगे साड़ी का पल्लू ठीक करने के बहाने उसे एक पल के लिए हटाते हुए झुकूं, तो वो मेरे मम्मों के पूरे मजे ले सकेगा.

जब मैं वहां पहुंची, तो वहां 4-5 लोग ही थे. उसने मेरा स्वागत किया और पहले मुझसे एक रिबन कटवाया.
मैंने रिबन काट कर उसके इस नए काम की शुरुआत का कर दी.

अशोक ने मेरा थैंक्स करते हुए कहा- आप नहीं जानती हैं मेम कि आपने मेरी प्रार्थना को मान कर मुझ पर कितना बड़ा अहसान किया है. आइए कुछ नाश्ता पानी हो जाए.

कुछ समय बाद उसको छोड़ कर बाकी के लोग विदा मांगते हुए चले गए.
अब वहां बस हम दोनों ही रह गए थे.

मैंने जानबूझ कर अपनी साड़ी का पल्लू इस तरह से गिराया कि जैसे वो अपने आप हो गया हो. मैं कुछ झुक कर पल्लू उठाने लगी, जिससे उसकी आंखें मेरे मम्मों पर टिक गईं और वो देखता ही रह गया.

मैंने जल्दी से पल्लू ठीक किया और फिर से बैठ गई.
मम्मों की झलक का असर उसकी पैंट के अन्दर होना शुरू हो गया था. उसका लंड उठने लगा था और उछल उछल कर बाहर आने को होने लगा था.

मैं ये सब देख कर भी अंजान बनी रही क्योंकि मेरा मकसद पूरा हो चुका था.

कुछ देर बाद उसने कहा- मैडम!
तो मैंने उसे रोकते हुए कहा- मेरा नाम रूपा है … मैडम नहीं, आप मुझे रूपा कह कर बुलाइए.

उसने कहा- ओके मैडम.
‘फिर मैडम!’
‘ओके रूपा जी.’
‘नहीं, रूपा जी नहीं … सिर्फ़ रूपा.’
‘ओके … देखिए आप बुरा ना मानिए, अभी मुझसे रूपा नहीं, रूपा जी ही बोला जाएगा.’

मैंने सोचा कि ठीक है धीरे धीरे ये खुद को एडजस्ट कर ही लेगा.

अशोक- रूपा जी, आप आज लंच कहां करना चाहेंगी?
मैंने कहा- अशोक जी, लंच देने वाले पर होता है कि वो कहां लेकर जाएगा.
तब वो बोला- ठीक है.

उसने किसी होटल में एक फैमिली केबिन बुक किया और मुझे वहां ले आया.

इस बीच मैंने 3-4 बार साड़ी का पल्लू गिराया और उसे अपने दूधिया मम्मों के दर्शन करवाती रही ताकि उसके लंड का खून गर्म रहे और वो कुछ आगे बढ़ने की कोशिश करे.

मैं पूरी तरह से देख रही थी कि उसका लंड बाहर आने की कोशिश कर रहा था.

खैर … अभी वो कुछ कर नहीं सकता था.

लगभग दो बजे हम दोनों होटल पहुंचे और अपने केबिन में जा बैठे.
वहां बैठते ही मैंने अपनी साड़ी का पल्लू इस तरह से कर लिया कि मम्मों का दरबार अब पूरी तरह से खुला होकर उसको गर्म करता रहे.

मेरे मम्मे शायद उससे कह रहे थे कि अशोक अगर तुझमें दम है, तो आ और भंभोड़ ले हमें.

अब उसका ध्यान मम्मों पर ज़्यादा और किसी बात पर कम था.

कुछ देर बाद मैंने कहा- क्या देख रहे हो?
वो शर्मा कर बोला- कुछ भी नहीं मैडम.

मैंने कहा- फिर मैडम!
वो बोला- सॉरी.

मैंने उसको कुछ लिफ्ट देते हुए कहा- देखो, जो तुम देख रहे हो, वो अगर किसी मैडम के हैं, तो तुम कुछ नहीं कर पाओगे और अगर रूपा के देख रहे हो, तो कोशिश करो … शायद अच्छी तरह से देखने के लिए सफलता भी मिल जाए.
ये सुनते ही उसने मेरी आंखों में झांका और मेरे हाथों को पकड़ कर कहा- सच बोल रही हो रूपा?
मैंने कहा- अब सिर्फ रूपा … जी कहां गया. जिसे अपना समझा जाता है वहां कोई औपचारिकता नहीं रहा करती, समझे मिस्टर अशोक.

मैं उसे पूरी लिफ्ट दे चुकी थी. अब जो भी कुछ करना था, उसी को करना था. वो भी कहां पीछे रहने वाला था. झट से उठा और मुझको अपने आगोश में लेकर चुम्बन लेने लगा और एक हाथ से मेरे मम्मों को दबाने लगा.

मैंने भी झट से उसकी पैंट की जिप खोल कर उसके लंड को आजाद करते हुए अपनी मुट्ठी में दबा लिया. हम दोनों अपनी वासना को रूप देने लगे.

कुछ देर बाद लंच आ गया, तो हम दोनों ने खुद को ठीक किया और खाना खाकर बाहर निकल आए.
अभी तक ना उसने मेरे मम्मों को पूरी तरह से देखा था और ना ही मैंने उसके लंड को देखा था. हालांकि हम दोनों ने हाथों से ही एक दूसरे के आइटम का निरीक्षण किया था.

बाहर आकर अशोक बोला- रूपा, अभी मेरा तुमको छोड़ने का दिल नहीं कर रहा है. कुछ देर मेरे साथ और रहो.
मैंने कहा- मैंने कब कुछ कहा है … बोलो, कहां चलना है?

वो मुझे अपने ऑफिस ले आया. वहां हमारे सिवा कोई और ना था इसलिए पूरी आज़ादी थी. वहां पहुंच कर उसने फिर से मुझे चूमना शुरू किया, फिर मैं भी कहां पीछे रहने वाली थी. उसके एक चुम्बन का जवाब मैं दो चुम्बनों से देने लगी थी.

फिर उसने मेरा ब्लाउज और ब्रा उतार कर मेरे मम्मों की पूरी तरह से निरीक्षण किया, हाथों में लेकर दबा कर देखा और मुँह से निप्पल को चूसा. मैंने भी उसके लंड को पूरा आज़ाद कर दिया. अशोक के लंड को देख कर मेरी आंखें खुली की खुली रह गईं. उसे लंड कहना तो उसकी बेइज्जती थी. पूरा 8 इंच लंबा और बीच में काफी मोटा था. ऊपर और नीचे से कुछ कम मोटा था.

मैंने अपनी मुट्ठी में लेकर उसे जैसे ही खींच कर नीचे किया, तो मुझे लगा कि वो कुछ और लम्बा हो गया है. मैंने हाथों से उसकी खूब मालिश की, मगर वो झुकने को तैयार नहीं था. मैं जितनी लंड की मालिश करती वो उतना ही फुंफकार मार रहा था.

आख़िर जब मैं थक गई, तो मैंने कहा- अब ये मेरे बस में नहीं है.
वो बोला- अब तो बस ये तुम्हारे ही भरोसे है. चाहे तो इसे ऐसे ही तड़फता छोड़ दो या फिर इसके साथ प्यार से पेश आओ. देखना प्यार पाते ही यह तुम्हारे कदमों में गिर जाएगा. इसे इस की रानी से मिलवा दो, फिर देखो कैसे अपने घुटने टेकता है.

जब मैंने रानी से मतलब अपनी चुत से मिलवाने को मना किया, तो वो लगभग रोते हुए बोला- क्यों इस पर जुल्म कर रही हो रूपा.
मैंने कहा- मेरी रानी अपने राजा से तभी मिलेगी, जब राजा का मलिक मुझसे शादी कर लेगा.

उसने कहा- मैं वादा करता हूँ कि शादी करूंगा तो तुम से ही.

इस तरह से उसने मुझे फुसला कर अपना लंड मेरी चुत से मिलवा दिया. अशोक का लंड बहुत मोटा और लंबा था. इधर मेरी चुत अभी सिर्फ एक बार ही चुदी थी और उसे भी काफी समय हो गया था. इसलिए मेरी कसी हुई चुत ने मोटे लंड का रास्ता रोक लिया.

अगली बार आपको इस सेक्स कहानी में अपनी आगे वाली मुनिया की चुदाई का मजा दूंगी. आप मेरी अन्तर्वासना की कहानी से जुड़े रहें और मुझे कमेंट्स करना न भूलें.
आपकी रूपा रानी

मेरी अन्तर्वासना की कहानी जारी है.

इस कहानी का अगला भाग : इस चुत की प्यास बुझती नहीं- 2