बेटी के यार के लंड से चुदाई की लालसा- 3

सेक्सी औरत की कहानी में पढ़ें कि मैं अपनी बेटी के दोस्त को पटाने के चक्कर में थी. वो भी मेरी जवानी को भोगना चाहता था पर खुल नहीं रहा था. तो मैंने क्या किया?

हैलो मैं सबीना आपको सेक्सी औरत की कहानी के पिछले भाग
बेटी के बॉयफ्रेंड को अपनी जवानी का जलवा दिखाया
में अपनी बेटी के यार के साथ मेला घूम रही थी. मेले में भीड़ अधिक होने के कारण वो मेरे पीछे मेरी गांड से अपना लंड सटा कर चल रहा. मैं उसके खेड़े लंड को अपनी गांड की दरार में महसूस करते हुए गर्म हुई जा रही थी.

अब आगे सेक्सी औरत की कहानी:

इस कहानी को सुनें.

फिर हम दोनों ने आगे आकर एक आइसक्रीम ली और दोनों ने एक आइसक्रीम में ही खाई.
वो मेरी जुबान को आइसक्रीम पर चलाते देखता तो अपनी जीभ भी आइसक्रीम पर लगा देता.

इस बीच मेरी जीभ उसकी जीभ से टकरा गई तो मैं गनगना उठी. मगर ये पब्लिक प्लेस था सो मैं ज्यादा कुछ नहीं कर सकती थी.

उसके बाद हम दोनों ने काफी चीजें खाईं. इसी तरह समय बीतता गया और अब रात के साढ़े आठ बज गए थे.

उधर एक जादू वाला जादू दिखा रहा था तो मैंने घर चलने से पहले शहज़ाद से जादू देखने को बोला.
वहां ज़्यादा भीड़ होने के कारण उसने मुझे वहां जाने से रोका.

मगर मेरी ज़िद पर वो मुझे उधर ले गया और मुझे अपने आगे खड़ा करके मेरे पीछे खड़ा हो गया.
उसने अपने सिर को मेरे कंधे पर रख लिया तो मैं भी थोड़ी अपनी छाती फुला कर खड़ी हो गयी जिससे मेरे मम्मों की गहराई एकदम से शहज़ाद की आंखों के सामने आ गई थी.

उसका लंड मेरी गांड से रगड़ता रहा और मैं भी अपनी गांड हिलाते हुए उसके लंड से अपनी मस्ती को बढ़ाने लगी.

इस तरह अब रात के 9 बजे से कुछ ऊपर समय हो गया था; मुझे बहुत तेज़ ठंड भी लगने लगी थी.
दिन में अच्छी धूप थी, जिसके कारण मैं कोई गर्म कपड़े नहीं पहन कर आई थी.

जब ये बात मैंने शहज़ाद को बोली, तो उसने मेरे कमर से हाथ ले जाते हुए मेरे पेट को पकड़ लिया और वो मुझे पीछे से एकदम जकड़ कर खड़ा हो गया.
मुझे इससे मस्ती चढ़ने लगी और मेरे अन्दर की गर्मी जागने लगी.

इसी तरह कुछ और देर घूमने के बाद हम दोनों वहां से आ गए और शहज़ाद मुझे मेरे घर छोड़ते हुए अपने घर चला गया.

उस दिन के बाद से हम दोनों में अच्छी बनने लगी.

एक दिन जब शहज़ाद घर आया था और रुबिका उसके साथ मस्ती कर रही थी.
मैं किचन में खाना बना रही थी.

उतनी देर में रुबिका की कोई सहेली आ गयी, तो वो उसके साथ बाहर वाले कमरे में चली गयी.
शहज़ाद रुबिका से खाली होकर मेरे पास किचन में आ गया.

मैं खाना बना रही थी और वो मेरे पास आकर मुझसे बात करने लगा.
तभी मैंने भी मौका देख कर उससे पूछा- उस दिन तुमने बोला था कि तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है, तो तुमको किस तरह की लड़की पसंद है?

शहज़ाद मेरे इस सवाल से थोड़ा हिचकिचा गया.
फिर हिम्मत करते हुए बोला- मुझे लड़कियां नहीं, बल्कि बड़ी उम्र की औरतों में ज़्यादा दिलचस्पी है.

मैंने उससे अनजान बनते हुए पूछा- क्यों?
उसने बताया- क्योंकि वो समझदार होती हैं और बहुत ज़्यादा ख्याल रखती हैं, परवाह करती हैं … और सबसे बड़ी बात ये कि वो कभी धोखा नहीं देती हैं. वो दिखने में भी बहुत खूबसूरत होती हैं, जैसी आप हो.

इस बात से उसने मुझसे थोड़ा फ़्लर्ट किया, तो मैंने भी उसके जवाब में बोला- मुझे भी तुम्हारी उम्र के लड़के बहुत ज़्यादा पसन्द हैं … और खास करके तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो. जिस तरह से तुम मेरा ख्याल रखते हो, वो मुझे बेहद भाता है.

इस पर शहज़ाद बोला- तो क्यों न इस बात पर हम दोनों आज से दोस्त बन जाते हैं … एकदम अच्छे वाले.
मैंने भी उससे अपनी रज़ामंदी दिखा दी.

उसने मुझे गले लगाने के लिए आगे आना चाहा, तो मैं खुद उसके पास जाकर उसके गले से लग गई.
मेरी ठोस चुचियां उसके सीने में घुसने लगीं.

वो मेरे मम्मों की गर्मी का मजा लेने लगा.

कुछ देर बाद मैं उसके गाल को चूमते हुए अलग हुई ही थी कि तभी मेरी बेटी आ गयी.

हम दोनों सामान्य हो गए और वो दिन बीत गया.

अब इसी तरह एक दिन जब मैं खाना बना रही थी कि मेरे शौहर का फ़ोन आया.
उन्होंने बताया कि जो हमारे पड़ोस में एक शर्मा जी का परिवार रहता है, उनकी माता जी की मिट्टी यानि मृत्यु हो गयी है. उनका अंतिम संस्कार उनके पति के गांव में होगा.

मैंने दुःख जताया तो वो बोले- हमारे घर से किसी का जाना जरूरी है क्योंकि शर्मा जी के यहां से हमारे बहुत घरेलू संबंध हैं.
मैं बोली- हां ये तो है.

मेरे शौहर बोले- दुकान खुली है, वरना मैं चला जाता. ऐसा करो तुम रुबिका के साथ उनके गांव चली जाओ.
मैंने बोला- रुबिका के पेपर हो रहे हैं, वो नहीं जा पाएगी.

इस पर मेरे शौहर बोले- अकेले तो उस तरफ जाना ठीक नहीं है.
कुछ देर सोचने के बाद वो बोले कि तुम ऐसा करो कि तुम शहज़ाद को अपने साथ लेती जाओ. मैं उसके घर पर बोल देता हूं.

मैं शहजाद का नाम सुनते ही झट से तैयार हो गयी.

कुछ देर बाद मेरे शौहर का फिर से कॉल आया और वो बोले- कुछ देर में शहज़ाद आ रहा है. तुम तैयार हो जाओ और उसके साथ बस से चली जाना.

हमको जहां जाना था, वो गांव हमारे शहर से 80 किलोमीटर दूर था.

मैंने जल्दी से खाना बना लिया और थोड़ा रास्ते के लिए भी रख लिया. एक छोटे बैग में अपने दो जोड़ी कपड़े रखे ताकि अगर कोई इमरजेंसी हो तो बदलने के लिए हो जाएंगे.

इसके बाद जल्दी से नहा कर अपने कमरे में आकर सोचने लगी कि क्या पहना जाए.

तभी मेरी नज़र मेरी बेटी के बुर्के पर पड़ी, जो मेरे जिस्म पर एकदम चुस्त आता था. मैंने तौलिया बदन से हटा कर सीधे उसको पहन लिया. बुर्के के अन्दर मैंने कोई भी कपड़ा या ब्रा पैंटी नहीं पहनी.

मैंने खुद को शीशे में देखा तो मैं एकदम गज़ब की माल लग रही थी.
मुझे अपने चेहरे पर तो उसी बुर्के का दुपट्टा बांधना था, तो मैं सिर्फ वही पहन कर तैयार हो गई.

कुछ देर बाद शहज़ाद मेरे घर आया और हम दोनों साथ घर से ऑटो से बस अड्डे तक आए और बस देखने लगे.

एक बस अभी निकल ही रही थी, तो उसकी सबसे पीछे वाली सीट ही खाली थी. पहले मैं अन्दर गयी. फिर शहज़ाद आया. उसके बाद वो जगह भी भर गयी.

बस चल दी और कुछ दूर चलने के बाद मैंने अपने नकाब का ऊपरी कपड़ा हटाया तो ब्रा और कुछ भी ना पहने होने की वजह से मेरी 34 की चुचियां एकदम साफ नजर में आने लगी थीं. वो कपड़ा भी एकदम पतला सा था, जिससे मेरे निप्पलों की नोकें भी एकदम साफ दिख रही थीं.

इस बुर्के का गला ऊपर से काफी बड़ा था, जिससे मेरे स्तनों की गहराई लगभग बाहर से ही साफ़ दिख रही थी.

जैसे ही शहज़ाद की नज़र मेरे ऊपर पड़ी, तो उसका चेहरा तो एकदम खिल उठा.

उतनी देर में बस रुकी और कुछ लोग उसमें और सवार हो गए. कुछ पीछे वाली सीट पर भी बैठ गए, जो पहले से भरी थी.

मैंने शहज़ाद से और थोड़ा अपनी तरफ आने को बोला. शहज़ाद अब एकदम से मुझमें घुस सा गया था और मैं लगभग उसपर चढ़ी हुई थी.

इसी तरह सारे रास्ते मेरी चूचियों की गहराई देख कर शहज़ाद का लौड़ा एकदम टननाया रहा.
उसका हाथ कभी मेरी कमर पर तो कभी मेरे पेट पर हो जाता.
मैं भी जानबूझ कर एकदम उसके गले लग कर सो गई थी. उसने अपने हाथों को मेरे कंधे पर से लाकर मेरी एक चूची पर रख दिया.

और इसी तरह हम शाम तक उस गांव में पहुंच गए.

वहां पहुंचे के बाद मैंने बुर्के के दुपट्टे को इस तरह ओढ़ लिया, जिससे मेरे खुले स्तन न दिखें.

फिर उस घर में पहुंची, तो हमें कुछ देर हो गई थी. घर से शर्मा जी की माता जी का शव जा चुका था.

हम लोग वहां शाम तक वहीं रहे.

जब शर्मा जी की वाइफ हमसे पूछने आईं कि यदि आप लोग रात रुकें, तो आप लोगों के लिए बिस्तर लगवा दूँ.

मैंने उसमें हामी भर दी क्योंकि वापस जाने का कोई साधन ही नहीं था.
यदि होगा भी तो मेरा मन आज रात शहजाद के साथ ही गुजारने का था.
मैंने शहज़ाद को भी समझा दिया.

तभी मेरे पति का फ़ोन आया और उन्होंने मुझसे पूछा कि कहां पहुंची … मतलब मुझे आज शाम तक ही वापसी करनी थी, लेकिन मैंने कुछ सोच कर आज यहां रुकने का फैसला कर लिया था.
फिर मैंने अपने पति से झूठ बोल दिया कि शर्मा जी की वाइफ ने मुझे रोक लिया है. मैं कल ही घर आऊंगी.

पति ने ‘ठीक है ..’ कह कर फोन काट दिया.

शाम को बगल वाले घर में भोजन था तो हम दोनों ने भी खाना खा लिया.

वहां सोने का समय जल्दी हो जाता था. मतलब पूरा गांव रात आठ बजे सो जाता था.
हम दोनों का बिस्तर एक कमरे में ज़मीन में लगा था और एक अकेला बिस्तर मसहरी के परली तरफ भी लगा हुआ था.
इस बिस्तर पर एक आदमी के लेटने भर का इंतजाम था. मैंने चालाकी से अपना बैग वहां रख दिया, जिससे और कोई न लेटे.

फिर करीब साढ़े 9 बजे शहज़ाद बोला- मैं लेटने जा रहा हूँ.
मैंने उसको वहीं लेटने को बोला, जहां मैंने अपना बैग रखा था. फिर मैं कुछ देर शर्मा जी की बीवी के साथ बैठी रही.

कुछ देर बाद मैं भी उसी कमरे में आ गयी और देखा … तो वहां पहले से सब लेट चुके थे. उस कमरे की लाइट बन्द थी, सिर्फ बाहर एक बल्ब की हल्की रोशनी कमरे में आ रही थी.

मैं सीधे शहज़ाद के पास चली गयी. जैसे मैं उसके पास पहुंची और उसे हिलाया तो वो एकदम से चौंक कर उठ गया.
मैंने उसको बताया कि मैं हूँ.
वो बोला- अच्छा.

मैंने उससे कहा- वहां सामने सब लेट गए थे और जगह भी नहीं बची थी. बाहर भी सब सो गए थे, वरना अपना बिस्तर अलग लगवा लेती.
शहज़ाद बोला- अरे आप यहीं लेट जाइए … बस आपको थोड़ा एडजस्ट करना पड़ेगा.

मैंने अपना दुपट्टा उतार कर अलग रख दिया. शहज़ाद कपड़े पहने लेटा था, तो मैंने उससे बोला कि तुम अपने कपड़े बदल लो … क्योंकि तुम कोई दूसरे कपड़े नहीं लाए हो. कल नहाधो कर इसी को पहन लेना.
वो बोला- तो क्या पहनूं?

मैंने अपने बैग से उसकी एक शार्ट निकाल कर उसको दे दिया और बोली- ये मैं तुम्हारे लिए रख लाई थी, इसको पहन लो.

उसने उसी ओढ़ने वाली चादर के नीचे अपने सारे कपड़े उतार दिए और बस शॉर्ट्स पहन लिया. मैंने उसके सारे कपड़े अपने बैग में रखे और लेट गयी.

उधर दो लोगों के लेटने की जगह बिल्कुल नहीं थी, जिस वजह से हम दोनों को लेटने में दिक्कत हो रही थी.

मैं शहज़ाद के ऊपर चढ़ कर लेट गयी.
जैसे ही उसके नंगे सीने पर मेरी चुचियों की नोक गड़ी और जब मैं उससे एकदम से चिपक गई, तो उसका लंड भी हिलने लगा.
उसने भी अपने दोनों हाथों को मेरी कमर पर रख लिए और हम दोनों किसी प्रेमी की तरह लेट गए थे.

उस वक़्त मेरा बहुत कुछ करने का मन कर रहा था, लेकिन उस कमरे में और भी लोग लेटे थे … जिस वजह से मैं मजबूर थी.

आगे कुछ देर बाद जब हम दोनों ने करवट ली, तो शहज़ाद मेरे ऊपर आ गया और मैं उसके नीचे हो गई.
अब उसका मुँह मेरी दोनों चुचियों के बीच में घुसा हुआ था और मैं उसकी पीठ पर अपने हाथ रखे थी.

इसी तरह पूरी रात दो जिस्म एक बने हुए लेटे रहे.

और जब मेरी आंख सुबह चार बजे खुली तो शहज़ाद मेरे दूध को पकड़ कर सो रहा था.
उस वक़्त मैं उसको जगाना नहीं चाहती थी, लेकिन वहां सब जल्दी उठते थे … इसी लिए मैं भी उठ गई और शहज़ाद को भी जगा दिया.

वहां कुछ लोग उठ चुके थे तो शर्मा जी भी जाग गए थे.
मैंने उनसे नहाने की जगह पूछी तो वो बोले कि आप छत पर चली जाएं. अपने साथ आप किसी लेडीज को लेती जाएं … क्योंकि वहां दरवाज़ा नहीं है … बस पर्दा पड़ा है.

मैंने अपने बैग से अपने और शहज़ाद के कपड़े निकाले और उसी के साथ ऊपर चली गयी.

मैंने शहज़ाद से कहा- तुम बाहर देखना, जब तक मैं नहा लेती हूँ.

मेरी ये बात सुनकर उसका चेहरा एकदम से खिल उठा. मैं बाथरूम के अन्दर आ गयी और उसका परदा मैंने थोड़ा खुला रखा, जिससे शहज़ाद मुझे नंगी नहाते हुए देख ले … और हुआ भी वैसे ही.

जैसे ही मैंने कपड़े उतारे तो वो चोरी चुपके से मुझे पूरा नहाते हुए देखता रहा.

फिर मैं नहा कर बाहर निकल आयी और उसके सामने ही अपने कपड़े ठीक करने लगी.

मेरे बाद शहज़ाद भी नहा कर तैयार हो गया और हम दोनों वहां से निकल कर बस से अपने घर चले आए.

इसी तरह कुछ और दिन निकल गए.

और फिर एक दिन मेरे पति घर पर थे क्योंकि आज उनकी दुकान की बंदी रहती थी.
उस दिन मेरी तीनों बेटियां अपनी नानी के यहां गयी थीं.

इस दिन मैंने सुबह करीब दस बजे शहज़ाद को फ़ोन किया.
फोन उठते ही मैंने उससे कहा- मैं अकेले घर पर बोर हो रही हूँ, तुम्हारे अंकल सो रहे हैं. बाकी कोई नहीं है. तुम आ जाते तो मेरी बोरियत दूर हो जाती.
वो बोला- ठीक है, मैं अभी आता हूँ.

उसके घर आने की बात सुनकर मेरी चुत में चींटियां रेंगने लगी थीं.

सेक्सी औरत की कहानी में आपको मजा आ रहा है ना? आप कमेंट करना न भूलें.
आपकी सबीना

सेक्सी औरत की कहानी जारी है.

इस कहानी का अगला भाग: बेटी के यार के लंड से चुदाई की लालसा- 4