मेरी बहू रानी को पुनः भोगने की लालसा- 1

मेरी अन्धी कामुकता की कहानी में पढ़ें कि जब मुझे लगा कि मेरी बहू से मिलने का अवसर प्राप्त हो सकता है. तो मेरी वासना उफनने लगी. बहू के मायके में शादी थी, वहां हम मिल सकते थे.

कामुकताज डॉट कॉम के सभी प्रिय पाठिकाओ एवं पाठको, मेरा अभिवादन स्वीकार करें.

आज काफी समय बाद आप सबसे मुखातिब हूं. देरी के कारण तो तमाम हैं पर मन में हमेशा यही अभिलाषा रही कि आप सब के लिए कोई नयी रचना लिखूं; पर ऐसा हो न सका.
कारण ये कि विगत वर्ष में मुझे आप सब चहेते पाठक पाठिकाओं के दसियों ई मेल मिले जिनमे सिर्फ अदिति बहूरानी के संग कोई नया कथानक लिखने का आग्रह किया जाता रहा है.

अब यूं तो मेरी बहूरानी अदिति के और मेरे अन्तरंग संबंधों को लेकर मैंने पिछले तीन चार वर्षों में बहुत सी कहानियां लिखीं हैं जिन्हें आप सब का भरपूर प्यार मिला है.
प्रस्तुत रचना इस सीरीज की अंतिम कहानी है.

वैसे अन्य कथानक लेकर आगे भी कुछ न कुछ अवश्य लिखता रहूंगा.

हां, एक बात और जो नए पाठक पाठिकाएं मेरी बहूरानी अदिति और मेरे यौन संबंधों को लेकर अनभिज्ञ हैं; उन्हें यह बात जरूर से ही कचोटेगी कि कैसे कोई पुरुष अपनी बेटी सामान पुत्रवधू के साथ सेक्स कर सकता है?

आपकी जिज्ञासा उचित और सही है.

हम सब परिस्थियों के दास हैं, जीवन में कब क्या घट आये इन सब पर हमारा वश नहीं चलता.

अदिति बहूरानी और मेरे बीच जो सेक्स संबंध बने वो किन परिस्थियों में बने कौन इसके लिए दोषी है?
ये सब जानने के लिए नए पाठक पाठिकाओं से अनुरोध है कि बहूरानी संग मेरी प्रथम कहानी यहीं कामुकताज डॉट कॉम पर
अनोखी चूत चुदाई की वो रात
पढ़ लें, जो पहले प्रकाशित हुई थी; इसके उपरान्त इस कथा सीरियल के अनेकानेक भाग आप यहीं कामुकताज डॉट कॉम पर पढ़ कर आनंदित हो सकते हैं.

अब बात करते हैं इस कामुकता की कहानी की.

बात कोरोना काल से ठीक पहले की है.

अदिति बहूरानी के मायके पक्ष में किसी लड़की की शादी होनी थी.
विवाह ग्वालियर के एक मैरिज गार्डन से संपन्न होना था क्योंकि वर पक्ष ग्वालियर में ही रहता था और लड़की म.प्र. के बुरहानपुर से थी और पूना में कोई जॉब कर रही थी.

वर भी पूना में ही किसी जॉब में था.
अब मेरी बहूरानी के मायके में शादी थी तो उनके मामा (वधू के पापा) हमारे घर आकर भी निमंत्रण दे गए और सपरिवार आने का बारम्बार आग्रह कर गए.

तो मित्रो, अब उमर के हिसाब से तो ये शादी ब्याह की जिम्मेवारी संभालना, समाज में आना जाना, तो अब मेरे बेटे अभिनव की जिम्मेवारी बनती है.

पर आप सब तो जानते ही हैं कि आजकल के इन नौजवानों को सामाजिक रिश्ते निभाने की कोई परवाह ही नहीं होती.
इसका एक ही घिसा पिटा जवाब रहता है कि ‘पापा आप ही चले जाना. मुझे ऑफिस से छुट्टी नहीं मिल रही!’

लेकिन अगर इनके फ्रेंड सर्किल में कोई फंक्शन हो तो ये लाख काम छोड़ कर वहां जरूर ही जायेंगे.
यही हाल, लगता है, सभी घरों का है.

लेकिन मेरी बहूरानी की तो बात ही अलग है.
कोई भी सामाजिक फंक्शन, चाहे आस पड़ोस में हो या कहीं दूर रिश्तेदारी में, वो सब जगह ख़ुशी ख़ुशी निभाते हुए बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती है.

कारण कि उसके रिश्तेदार, सहेलियां इत्यादि से मिलना जुलना हो जाता है और सबकी खोज खबर मिलती रहती है.
इन सबके अलावा बहूरानी समस्त तीज त्यौहार विधिविधान से मनाना आवश्यक व्रत उपवास रखना भी उसे खूब भाता है.

तो इस तरह रिश्तेदारी में ग्वालियर में शादी होनी थी. मुझे पता था कि बेटा तो जाने से रहा वो तो बहू को ही आगे कर देगा कि तू ही चली जाना और बहू अपनी सास से यह सब बातें बता कर फोन करेगी और जाने की अनुमति मांगेगी.
और फिर उसकी सासू माँ मुझसे यह बात छेड़ेगी कि ग्वालियर की शादी में जाना है; अभिनव तो जा नहीं पायेगा; आप कहो तो बहू को जाने दें? अगर आप भी चले जाते तो और भी अच्छा रहता; किसी को कोई शिकायत नहीं रहती.

और हुआ भी यही.
अदिति ने अपनी सासू माँ से सब बातें बतायीं और पूछा कि आप कहो तो वो ग्वालियर चली जाये?
अब बात थ्रू प्रॉपर चैनल मेरे पास तक तो आनी ही थी:

“जरा सुनिये, अखबार फिर पढ़ लेना!” रानी (मेरी धर्मपत्नी) ने अधीरता से कहा.
“हां, बोलो तो सही … सुन रहा हूं.” मैंने बात का अंदाज़ा लगा कर अखबार में ही मुंह घुसाए हुए जवाब दिया.
“अरे अखबार पांच मिनट बाद पढ़ लेना.” रानी ने झल्लाते हुए कहा और अख़बार छीन कर मेज पर डाल दिया.

“अदिति का फोन आया था, बहू कह रही थी कि ग्वालियर वाली शादी में अभिनव ने तो जाने से मना कर दिया है; अगर आप इजाजत दो तो वो ही चली जाये.” रानी बोली.

“अरे, तो कह दो उससे की ख़ुशी ख़ुशी चली जाय; आखिर उसके बड़े मामा की बेटी की शादी है एक तरह से बहिन ही हुई उसकी, उसे तो जाना ही चाहिए. और उससे कह देना कि कोई सोने की चेन, ईअररिंग्स या ब्रेसलेट जो भी उसे अच्छा लगे गिफ्ट में देने के लिए लेकर जाय; और हां मेरा बोल देना कि पापा नहीं आ पायेंगे.” मैंने कह दिया.

मैंने अपने न जा पाने की बात जान बूझ कर कही थी; मैं अदिति पर इस बात की प्रतिक्रिया देखना चाहता था.
मुझे अदिति को देखे हुए (उसे चोदे हुए) साल भर से ऊपर ही हो गया था क्योंकि इस दिवाली पर वो आ नहीं सकी थी.

और मुझे पता था कि उसके मन में मुझसे मिलने की तड़प जरूर होगी और वो मुझे शादी में ग्वालियर बुलाने का कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेगी.

इस बात के अगले दिन सुबह:

“सुनिये जी, रात में अदिति का फोन फिर से आया था.” मेरी पत्नी रानी बोली.
“हां क्या कह रही थी?”
“कह रही थी पापा भी आ जाते तो अच्छा रहता. अभिनव के लिए नीम्बू का मीठा वाला अचार भी आप भेज देतीं क्योंकि मम्मी आपको पता ही है कि अभिनव को नाश्ते में परांठे और नीबू का मीठा अचार ही पसंद है.” रानी बोली.
“हूं …” मैंने संक्षिप्त स्वर में कहा.

“सुनो, आप चले जाओ न ग्वालियर. अचार तो अपने यहां रखा ही है. मैं पैक करके दे दूंगी. अभिनव को बचपन से ही वही अचार पसंद है और आप शादी में शामिल हो जाओगे तो वहां भी सबको अच्छा लगेगा.” रानी मनुहार सी करती हुई बोली.

“अरे यार जरा सी बात के लिए मैं इतनी दूर जाऊं? बहू से कह दे मार्केट से खरीद ले या ऑनलाइन मंगवा ले!” मैंने टालते हुए कहा.
“नहीं, आप ही जाओ. अभिनव को मेरे हाथ का अचार ही पसंद है. बाहर का तो वो खायेगा ही नहीं!” पत्नी ने जिद की.

“अच्छा ठीक है, तुम अभी बहू को फोन लगा के बता दो कि मैं आ जाऊंगा.” मैंने हथियार से डालते हुए कहा.

रानी ने झट से बहू को फोन मिलाया.
“अदिति बेटा, तेरे पापा मान गए हैं. वो अचार लेकर ग्वालियर पहुंच जायेंगे.” रानी ने खुश होकर बहू से कहा.

बात मेरे सामने ही हो रही थी सो मैं जानबूझ कर जोर से खांसा ताकि खांसने की वो आवाज अदिति के कानों तक पहुंच जाये.
जवाब में मुझे अदिति की खिलखिलाहट सुनाई दी.

मुझे भी अदिति से ऐसे ही किसी पॉजिटिव रिस्पोंस की आशा थी.

फिर सास बहू के बीच कुछ और घर गृहस्थी की बातें हुईं और फोन कट गए.

तो मित्रो, इस तरह मेरा शादी में जाने का कार्यक्रम तय हो गया; बहूरानी से मिलने, उन्हें तबियत से चोदने की तड़प तो मेरे दिल में भी थी.

मिलने के बाद अदिति के साथ चुदाई की तमन्ना कैसे पूरी होगी यह यक्ष प्रश्न अब मेरे सामने था; क्योंकि शादी समारोह में तो वो सब कर लेना संभव ही नहीं था.

कैसे क्या होगा मन में यही सब उधेड़बुन लिए मैं ग्वालियर जा पहुंचा.

विवाह समारोह तो जैसा कि आजकल चलन है, एक मैरिज गार्डन में होना था वहीँ पर वर वधू दोनों पक्षों के रिश्तेदारों के ठहरने का भी इंतजाम था.

जिस दिन विवाह होना था मैं उसी दिन शाम के पांच बजे के लगभग पहुंचा सब परिचितों से हाय हेलो होती रही.
पर मेरी नज़रें तो जिसे खोज रहीं थीं वो कहीं नज़र ही नहीं आ रही थी.

नज़र की प्यास भी अजब होती है; जब तक वो नज़र न आ जाये निगाहें चहुँ ओर उन्हें ढूँढती ही फिरती हैं.
आस पास बैठे रिश्तेदारों की बातों का मैं हां हूं में जवाब देता रहा था.

जल्दी ही मुझे बहूरानी के दर्शन मिल गए.

वो हाथ में पानी का गिलास लिए, गहरे हरे या काही कलर की साड़ी में वो धीर गंभीर चाल से चलती हुई, जिसे कवियों ने गजगामिनी की उपमा दी है, चली आ रही थी.

सिर का पल्लू माथे तक लिया हुआ था, गले में भारी हार और मंगलसूत्र, ब्लाउज में कैद कसे हुए उन्नत स्तनों का वो प्यारा उभार, मेहंदी रचे हाथों में सोने और हरे कांच की मिश्रित चूड़ियां, महावर लगे पावों में चांदी की भारी पायलें, मतलब जैसे शादी ब्याह में ये नव वधुयें बन संवर कर टिपटॉप होकर कहर ढाने जाती हैं, बिल्कुल वैसे ही सर्वांग सुंदरी मेरी बहू लग रही थी.

बिना लिपस्टिक के बहू के लाल लाल रसीले होंठों पर एक दबी सी मुस्कान खेल रही थी जैसे वो किसी आने वाले या मिलने वाले आनंद की कल्पना करके अभी से ही रोमांचित हो रही हो.

यहां मैं अपनी बहूरानी के बारे में कुछ और बातें संक्षेप में बता दूं.

यूं तो मेरे और अदिति के बीच सेक्स के अन्तरंग सम्बन्ध पिछले लगभग चार वर्षों से हैं और मैं उन्हें बीसियों बार छक के चोद चुका हूं.
मगर मेरी अदिति बहू के शालीन स्वभाव पर हमारे इन सेक्स संबंधों का असर कभी नहीं हुआ.

उसने मेरे साथ सदैव ही एक कुलीन कुलवधू की तरह व्यवहार किया है.
भले ही हम किसी एकांत में हों पर बहूरानी की साड़ी का पल्लू हमेशा उनके माथे तक ही रहा और उन्होंने हमेशा नज़रें झुका कर ही मुझसे बात की है.

हां जब चुदाई का मौका कभी मिलता है तो चुदाई के मामले में अदिति से बड़ी खिलाड़ी शायद ही कोई स्त्री हो. वो पूर्ण निर्लज्ज तरीके से मेरा लंड चाट चाट कर, चूस चूस कर फिर उसे अपनी गीली चूत में घुसा कर जितनी बेशर्मी से उछलती है उसकी कोई सानी नहीं, कोई मुकाबला नहीं.

“पापा जी नमस्ते!” पानी का गिलास मुझे पकड़ा कर बहूरानी बोलीं और फिर विधि पूर्वक मेरे पावों छू कर नज़रें नीची करके खड़ी रहीं.
मैंने भी हमेशा की तरह उन्हें आशीर्वाद दे दिया.

“पापा जी, आप चाय तो पियोगे न?” बहूरानी पानी का गिलास उठाते हुए कोमल स्वर में बोली.
“हां बेटा, जरूर. अगर तू अपने हाथों से बना दे तो अच्छा रहेगा.” मैंने कहा और उसे वो नीम्बू के अचार का जार उसे दे दिया.
“पापा जी, ये भी कोई कहने वाली बात है?” वो अचार का जार अपनी छाती लगा कर बोली.
“अरे बेटा, शादी ब्याह का माहौल है इसीलिए कह दिया. चल ठीक है बना दे.” मैंने कहा.

इस तरह चाय नाश्ता, डिनर, शादी इत्यादि सब निपट गया.

अब ये सब बातें मेरी कहानी का विषय तो हैं नहीं तो चलो मुद्दे की बात पर आते हैं.

शादी की रस्मों में सारी रात आँखों ही आँखों में गुजर गई.
भला सोना भी किसे था; अदिति और मेरे बीच नैन-मटक्का चलता रहा.
चुदाई के संदेशों का आदान प्रदान इशारों इशारों में ही चल रहा था.
कारण कि पूरे समाज के सामने ससुर बहू का आपस में ज्यादा बोलना चालना शोभा नहीं देता.

पर बहूरानी जितना उसके लिए संभव हो सकता था उतना वो अपनी तरफ से निभा ही रही थी; कभी नाश्ता दे जातीं, कभी कॉफ़ी दे जाती.
इसी बहाने हमें एक दूसरे को छू लेने का मौका मिल जाता और उस क्षणिक सुख में भी आनंद आ जाता.

“अदिति बेटा, कुछ जुगाड़ फिट कर न अपने मिलन की. नहीं तो सारी रात ऐसे ही तरसते तड़पते गुजर जायेगी; फिर कल सुबह विदाई के बाद हमें निकलना होगा, शाम को दिल्ली से तेरी फ्लाइट जो है.” मैंने अपनी व्यग्रता व्यक्त की जब वह आधी रात के बाद कॉफ़ी का पूछने आयी.

“पापा जी, इतने सारे मेहमान हैं मैरिज गार्डन का कोई कोना, कोई जगह सूनी नहीं है, आप कहो तो किसी वाशरूम में घुस जाते हैं और फटाफट निपट लेते हैं.” बहूरानी ने अनिच्छा से कहा.

“अरे नहीं बेटा, वाशरूम में क्या मज़ा आएगा. जब तक तुझे पूरी नंगी करके, तेरा एक एक अंग चाट चाट के चूम चूम कर तुझे चोद न लूं मुझे तसल्ली नहीं होगी. कब से तेरी चूत चाटने को नहीं मिली … इस बार सोचा था कि सारे अरमान पूरे कर लूंगा पर … पर, चलो बेटा जाने दो; फिर कभी देखेंगे.” मैंने मायूसी से कहा.

बहूरानी ने भी उदास होकर अपनी नज़रें झुका लीं पर उनकी आंखों के कोरों से झांकती नमी मुझसे छुपी न रह सकी.
मेरी कामुकता की कहानी पर अपने विचारों से मुझे अवगत कराइएगा.
[email protected]

कामुकता की कहानी जारी रहेगी.

इस कहानी का अगला भाग: मेरी बहू रानी को पुनः भोगने की लालसा-2