बढ़ती उम्र में नयी तरंग-3

सेक्स पार्टनर एक्सचेंज कहानी में मैं और मेरी बीवी होटल में एक दूसरे कपल के कमरे में से सेक्स के लिए अपने कमरे में आ गए. लेकिन जब हमने सेक्स शुरू किया तो …

मित्रो, आपने मेरी कहानी के द्वीतीय भाग
गैर मर्द के सामने बीवी ने लंड चूसा
में पढ़ा कि एक पर्यटन स्थल पर हमें हम जैसा एक युगल मिला जिनसे हमारी दोस्ती हो गयी. शाम के समय एक किले में हम चारों रह गए थे. बारिश होने लगी थी और वहां हमारी बीवियों ने हमें मुख मैथुन का मजा दिया, इसके साथ ही हम चारों आपस में खुल गए और रात को होटल के एक कमरे में मस्ती कर रहे थे.

अब आगे Sex Partner Exchange Kahani:

“हा हा हा हा” हंसते हुए वि‍वेक बोला- अरे स्‍वीटहार्ट, हमें पता है तुम्‍हारी नींद का, चुपचाप यहीं बैठ जाओ, कहीं नहीं जाना।
“अब मूड खराब मत करो यार! मौसम भी है मौका भी, मस्‍तानी रात भी, कुछ तो फायदा उठाने दो।” मैंने विवेक को आंख मारते हुए कहा।
“अब हमसे क्‍या शर्माना? जो भी फायदा उठाना है यहीं उठाना! तुम हमारे सामने और हम तुम्‍हारे सामने!” विवेक ने मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा।

“जी नहीं, कुछ शर्म करो! वहां बाग में जो हुआ वो बस नशे में हो गया। अब हमें अपने कमरे में जाने दो।” शशि ने जवाब दिया।

पर मुझे जैसे विवेक की बात कुछ जंच सी गई।
अगर यूं कहूं कि मेरे अन्‍दर अब नई शरारत हिलौरे मारने लगी।
मैंने भी शशि से वहां ही रूकने का अनुरोध किया।

शशि ने मुस्‍कुराते हुए मेरी तरफ देखा और बोली- सुधर जाओ! चुपचाप अपने कमरे में चलो, वरना मैं तो चली।
मैंने सोचा थोड़ी कोशिश किये बिना भी हार मानना ठीक नहीं। मैंने शशि से दुबारा वहीं रूकने का अनुरोध किया।

थोड़ी देर ना-नुकुर करने के बाद शशि वहां उसी कमरे में रूकने को राजी हो गई।

तभी अचानक फोन शशि के मोबाइल पर बेटे का कॉल आ गया।
शशि उससे बात करने के लिये उस कमरे से निकलकर बराबर में सटे अपने कमरे में चली गई।

तो शशि के जाते ही मैंने विवेक से कहा- वैसे तो मैं शशि को इसी कमरे में लाने का प्रयास करूंगा. परन्‍तु यदि न आ पाई तो मेरे कमरे का दरवाजा कभी भी तुम्‍हारे लिये खुला होगा। जब भी आना चाहो, स्‍वागत है।
विवेक की तरफ आंख मारकर मैंने विवेक से वापस दरवाजा खोलकर रखने को बोलकर जल्‍दी ही वापस आने का वादा किया और शशि के पीछे-पीछे अपने कमरे में चला आया।

कमरे में आकर हम दोनों ने तसल्‍ली से बच्‍चों से बात की।
बातचीत के बाद मैंने अपने ही कमरे में रहकर सही माहौल बनाना ठीक समझा।
मैं किसी भी प्रकार की जल्‍दबाजी का पक्षधर नहीं था।

परन्‍तु ज्‍यादा देर करना भी तो मूर्खता का परिचायक था।
फोन से फ्री होने के बाद तुरन्‍त मैंने अपने कमरे में ही शशि को अपने बिस्‍तर पर खींच लिया।
एक तो शाम को बाग वाला नशा दिमाग से अभी तक उतरा नहीं था; ऊपर से उसकी कामुक वेशभूषा मुझे पागल कर रही थी।

बिस्‍तर पर आते ही शशि धड़ाम से मेरे ऊपर ही आकर गिरी।
मैंने शशि को अपने बाहुपाश में कस लिया और उसके चेहरे पर चुम्‍बन की बारिश शुरू कर दी।

शशि भी मेरा पूरा साथ देने लगी।
पूरी तरह से मेरे ऊपर लेटी शशि ने अपनी बारीक लम्‍बी अंगुलियों को मेरे बालों में फिराना शुरू कर दिया।

मेरे हाथ शशि की कमर के निकले भाग से नितम्‍बों तक उसको सहलाने लगे।
मेरी नजरें तो शशि की नजरों में ही डूबी हुई थी।

हम दोनों एक दूसरे में ऐसे खोये कि हमें भान ही नहीं रहा कि कब बराबर के कमरे से विवेक और काजल हमारे कमरे में आकर हमारी कामक्रीड़ा का दर्शन लाभ लेने लगे।

अचानक मेरी निगाह काजल पर पड़ी जो कुछ दूरी पर खड़ी हम दोनों को बहुत ही प्‍यासी नजरों से निहार थी।
अरे ये क्‍या … काजल के पीछे ही विवेक भी तो खड़ा था।

विवेक काजल के पीछे से चिपक कर खड़ा दोनों बांहों में काजल को दबाये उसके दोनों उरोजों को सहला रहा था।
नजरें मिलते ही विवेक ने मुझे आंख मारी।
मैंने काजल की तरफ देखा।

काजल हम दोनों को देखकर मुस्‍कुरा रही थी।
मैंने भी उस समय उन दोनों को नजरंदाज करना ही उचित समझा और अपना काम चालू रखा।

अचानक से मेरी उत्‍तेजना बढ़ने लगी।
अब मैं शशि की भी टोह लेना चाहता था।

मैंने शशि से पूछा- सुनो!
“हम्‍म …” शशि हुंकारी।
“तुम्‍हें विवेक और काजल कैसे लगे?” मैंने शशि के कान में हौले से पूछा।
“अच्‍छे हैं दोनों मिलनसार भी हैं।” शशि ने कहा।

“और विवेक बहुत हैण्‍डसम भी है ना!” मैंने फिर से शशि को टटोला।
“और काजल बहुत सैक्‍सी भी है ना!” शशि मेरी नजरों में देखकर मुस्‍कुराई।

“चलो उनके कमरे में ही चलते हैं!” मैंने कहा।
“अरे रहने दो ना … वो दोनो लगे होंगे, अब उनको क्‍यों डिस्‍टर्ब करते हो!” शशि ने जवाब दिया।
“हो सकता है वो दोनों हमारा इंतजार कर रहे हों!” मैंने फिर से कहा।
“रहने दो ना … पता नहीं वो हमारे बारे में क्‍या सोचेंगें।” शशि ने उत्‍तर दिया।

“अच्‍छा एक बात बताओ?” मैंने पुन: शशि पर प्रश्‍न दागा।
शशि- पूछो।

“बाग में इस तरह अपने सामने ही किसी दूसरे जोड़े तो कामावस्‍था में अच्‍छा लग रहा था ना?”
“हम्‍म्‍म्‍म्‍म … बहुत ही मजेदार … पर अब सोचकर भी शर्म आ जाती है।”

शशि ने निस्‍संकोच कहना जारी रखा- सच कहूं तो उस समय मुझे भी होश नहीं था। बहुत ही उत्‍तेजक लग रहा था। मजा भी आ रहा था। पर अब शर्म महसूस हो रही है।
“अच्‍छा जी, अब हमसे शर्माना कैसा?” अचानक बराबर में खड़ी काजल से शशि की चुटकी काटते हुए कहा।

शशि ने पलटकर उन दोनों की ओर देखा तो नजरें नीची करे मेरी छाती में गड़ती सी जाने लगी।

अब तो शशि को उन दोनों के आने का पता चल ही चुका था।
तो मैंने भी मौके की नजाकत को समझते हुए विवेक से कहा- विवेक भाई, हमें तो बस एक ही बिस्‍तर काफी है तुम चाहो तो दूसरा बिस्‍तर कब्‍जा सकते हो।

काजल तो जैसे इसी अवसर की प्रतिक्षा में थी; एकदम कूदकर बराबर वाले बिस्‍तर में आ गई।

कूदने से काजल की नाईटी काफी ऊपर तक उठी उसकी गोरी चिकनी जांघें देखकर ही मेरा तो जी गले में आ गया।
काजल ने भी जैसे मेरी इस हरकत को भांप लिया था।

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बराबर में लेटते ही दोनों टांगें ऊपर की तरफ उठा दी।
अब तो उसकी पूरी नाईटी ही पेट पर आ गिरी।

पैरों के नाखून से लेकर गुलाबी रंग की पैंटी तक बिल्‍कुल करीने से संरचित टांगें मेरे खून को और गर्मी देने लगी।
मेरी तरफ देखकर मुझे चिढ़ाती हुई काजल बोली- उधर ध्‍यान दो मिस्‍टर!

मैंने अकबकाकर शशि की तरफ देखा।
पर वो तो शायद होश में ही नहीं थी; बस बेतहाशा मेरे बदन को चाटे जा रही थी।
पर मेरा ध्‍यान अब दो जगह भटकने लगा। सेक्स पार्टनर एक्सचेंज का समय आ चुका था.

अब तक विवेक काजल के पास आ चुका था।
उसने आते ही काजल का नाईटी को ऊपर सरकाकर उसकी केले के तने जैसी चिकनी टांगों को चाटना शुरू कर दिया।

विवेक ने काजल के पैर के अंगूठे को अपने मुंह में भर लिया और उसको चूसने लगा; दोनों हाथों से काजल की जांघों को सहलाने लगा।

काजल का मुंह बिल्‍कुल मेरे पास था।
उफ्फ् … काजल की सीत्‍कार मुझे पागल करने लगी।

मैंने अपने हाथों की उंगलियों को शशि के पजामे में फंसाते हुए उसको नीचे की तरफ सरका दिया।
क्‍योंकि मैं जानता था कि शशि जाघों से बहुत संवेदनशील है और वहां हाथ लगाते ही शशि अतिउत्‍तेजित हो जाती है।

वैसे भी शशि की गुदाज मखमली जांघें देखकर तो मैं खुद भी नियंत्रण से बांहर हो जाता हूं।

‘हक्‍क्‍क् … ’ ऐसा लगा जैसे शशि के गले में कुछ फंस गया है।
मैंने शशि को प्‍यार से काजल के बगल में लिटाने को करवट ली तो देखा कि काजल की जांघों पर तो विवेक का एक हाथ बहुत ही नाजुक अंदाज में थिरक रहा था।
अब समझ में आया कि शशि के गले में क्‍या फंसा था।

मैं शशि को लिटाकर तुरन्‍त उसके उसके बराबर में आ गया।
अब काजल और शशि बराबर-बराबर में लेटी थी; मैं शशि के दूसरी ओर था।

पर विवेक उन दोनों की टांगों के बीच फंसा था।
हालांकि शशि की आंखें बन्‍द थी परन्‍तु उसको मिलने वाले आनन्‍द की अनुभूति उसके तेजमय चेहरे को देखकर ही हो रही थी।

परन्‍तु उस समय उसके चेहरे पर जितना नूर था वो मैंने उससे पहले कभी नहीं देखा था।
जबकि काजल की आंखें खुली थी और वो तो सब को देखकर पूरा मजा ले रही थी।

मैंने शशि के बराबर में लेटते ही बिना समय गंवाये उसकी कमीज के बटन खोलकर उसको ऊपर उठाकर आहिस्‍ता से उसकी कमीज निकाल दी और साथ ही पीछे से उसकी ब्रा का हुक भी खोल दिया। कमीज और ब्रा के बीच से हटते ही मेरी नजरों के सामने वो उत्‍तेजक दृश्‍य था जिसको देखकर ही मैं पागल होने लगा।

शशि के दोनों चूचुक बिल्‍कुल कड़े हो गये।
मैंने अपने दोनों हाथों की उंगलियों से उनको सहलाना शुरू कर दिया।

“आह्ह …” शशि की यह हल्‍की से बेजान कराहट भी कमरे के माहौल को और रोमांचक बनाने लगी।
शशि की आवाज इतनी नशीली आज से पहले तो कभी नहीं थी।
मैं तो बस उसमें खो जाने को बेताब था।

इधर विवेक भी शशि की नशीली आवाज से अधीर होकर उसकी तरफ ही मुड़ गया।
उसने शशि की टांगों को चाटना शुरू कर दिया।

अब शशि पर दोहरा प्रहार होने लगा।
ऊपर से तो मैं उसके चूचुक से खेल रहा था और नीचे विवेक उसकी टांगों से!

काजल बेचारी अकेली रह गई।
तो उसने भी आकर शशि पर ही हमला बोल दिया।
अब तक शशि के गुलाब की पंखुड़ी जैसे होंठ काजल के होंठों में कैद हो चुके थे।

विवेक ने शशि की टांगों को सहलाते हुए ऊपर का रूख किया और उसकी गुलाबी आवरण से छुपी मांसल योनि की दरार पर उस परदे के ऊपर से ही अपनी जीभ से प्रहार शुरू कर दिया।

अब एक साथ तीन हमले सहने की स्थिति में शशि नहीं रही थी।
शशि की बेचैनी अब बाहर आने लगी।

उसने अपनी टांगें उठाकर एक जोरदार झटका विवेक को दिया और अपने हाथ को अपनी गुलाबी पैंटी के ऊपर रखकर सीत्‍कारी- उफ्फ … कुछ करो प्‍लीज, इसके अन्‍दर चींटियां रेंग रही हैं … मैं मर जाऊंगी। प्‍लीज कुछ करो ना!

विवेक ने दोबारा शशि की गुलाबी पैंटी पर हाथ फिराते हुए मेरी तरफ देखकर पूछा- यह मौका मुझे मिलेगा क्‍या?

हालांकि शशि की कामाग्नि पूरे उफान पर थी और वो यह भी जानती थी कि इस समय वो तीन अलग अलग लोगों के साथ यह खेल खेल रही है पर फिर भी मैंने उससे पूछना जरूरी समझा।
“ये मौका विवेक को दूं क्‍या?” मैंने हौले से शशि के कान में पूछा।
“सीईई ईईईई … हम्‍म्‍म्‍म!” बस इतना ही बोल पाई शशि!

विवेक तो जैसे इसी इंतजार में था उसने तुरन्‍त अपनी उंगलियों को शशि की पैंटी में फंसाकर उसको नीचे सरका दिया।

शशि ने भी नितम्‍बों को हल्‍का सा उठाकर उसकी मदद की।
अब शशि का चिकना मांसल स्‍वर्ग जैसा योनिद्वार विवेक के सामने था।

विवेक ने बहुत ही प्‍यार से उसके दोनों योनिओष्‍ट खोलते हुए भंगाकुर पर अपनी गीली जीभ रख दी।
“आईई ईईईई … ” सिसकारती हुई शशि ने पुन: आग्रह किया- प्‍लीज … मैं मर जाऊंगी।

मुझसे मेरी शशि का ये करूण वन्‍दन बर्दाश्‍त न हुआ तो मैंने भी शशि के मोटे कामुक उरोजों को छोड़कर नीचे का रूख किया।

काजल तो जैसे इसी प्रतीक्षा में थी, उसने तुरन्‍त अपने दोनों हाथों से शशि की उन खूबसूरत पहाड़ियों को ढक लिया।
उधर विवेक भी तब तक अपना बरमूडा नीचे सरका चुका था।

विवेक का काला नाग शशि को डसने के लिये फुंकार रहा था।
वह शशि की दोनों टांगें खोलकर उनके बीच में बैठ गया।

उसने शशि के नितम्‍बों से उसको थोड़ा सा उठाकर मुझसे उसके नीचे एक तकिया लगाने का इशारा किया।
मैंने तकिया लगाकर शशि के नितम्‍बों को थोड़ा ऊपर कर दिया।

विवेक ने पहले तो शशि की दोनों टांगों को उठाकर अपने कंधों पर रखा फिर समय न गंवाते हुए अपने प्रेमदण्‍ड का गुलाबी मुखड़ा शशि के स्‍वर्गद्वार पर रख दिया।

उत्‍तेजना में शशि ने काजल के बाल पकड़कर खुद से चिपका लिया।

विवेक ने धीरे धीरे से शशि के अन्‍दर सरकाना शुरू किया।
शशि का टांगें खुद-ब-खुद ही पूरी फैल गई।
थोड़े प्रयास के बाद ही विवेक ने शशि की गुफा पर पूरा कब्‍जा कर लिया।

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