मुँहबोली दीदी की प्यास बुझायी-1

गरम लड़की की वासना उससे क्या क्या करवा सकती है, इस कहानी में पढ़ कर अनुभव करें. एक शादीशुदा लड़की जिस लड़के को भी मानती थी, अंतर्वासना वश उसी को अपना जिस्म दे बैठी.

कामुकताज डॉट कॉम के सभी प्यारे दोस्तों को हर्षद का प्यार भरा नमस्कार.

मैं आप सभी का मेरी नयी कहानी में स्वागत करता हूँ.

दोस्तो, आपके मनोरंजन के लिए फिर एक कहानी लेकर आया हूँ, शायद आपको यह Garam Ladki ki Vasna Ki Kahani बहुत पसंद आएगी.
यह कहानी है मेरी और मेरी मुँहबोली बहन के साथ हुई चुदाई की!

उसका नाम है रीमा.

हमारे घर के थोड़ी ही दूर तीन साल पहले एक परिवार रहने आया था, उनका खुद का घर है.
हमारे आने जाने के रास्ते पर ही उनका घर है.

उनके घर अंकल, आँटी, उनका लड़का सूरज और उसकी पत्नी रीमा रहते हैं.

मेरे पिताजी और अंकल की अच्छी दोस्ती हो गयी थी.
मैं भी आते जाते समय उनसे बात करता था. इस तरह से उनके परिवार से हमारे काफी अच्छे पारिवारिक रिश्ते बन चुके थे.

रीमा और सूरज की शादी को तीन साल हो चुके थे.
सूरज एक सरकारी नौकरी में था, उसकी हर साल ट्रान्सफर हो जाती थी. इसलिए वह महीने में दो या तीन दिन घर में आकर परिवार के साथ बिता सकता था.

रीमा बहुत ही सुंदर और सेक्सी लड़की थी.
उसकी फिगर 32-28-34 की है. देखने वाले का लंड खडा करने वाली फिगर है.
उसका कद 5’4′ इंच है.

रीमा हमेशा हंसमुख रहती है. वह मुझे भाई मानती थी और मैं उसे दीदी कहता हूँ.
वह लगभग मेरी उम्र की ही है.

उसकी और मेरी खूब जमती थी, हम हमेशा एक दूसरे से हँसी मजाक के साथ बात करते थे. हम दोनों हमारी सभी बातें एक दूसरे से शेअर करते थे.
वह मेरे साथ हमेशा खुश रहती थी.

हम दोनों एक दूसरे से इतना घुलमिल चुके थे कि एक दूसरे को गले लगाना, एक दूसरे के शरीर पर कहीं भी स्पर्श करना हमारे लिए आम बात बन चुकी थी.
लेकिन मेरे मन में कभी अलग सा ख्याल नहीं आया था.

आँटी और अंकल भी मेरे साथ घुलमिल गये थे.
अगर एक दिन भी मैं उनके घर नहीं गया तो वे मुझे फोन करते थे कि क्या हुआ? आज आया नहीं?
इस तरह हमारे संबंध जुड़ गये थे.
वे मुझे अपने लड़के जैसे ही समझते थे.

अंकल हमेशा कहते थे कि तुम घर में होते हो तो हमारे सूरज कमी पूरी हो जाती है. उसे काम की वजह से फुरसत नहीं मिलती. लेकिन तुम थोड़ी देर आकर हमारे साथ बात करते हो तो घर में रौनक आ जाती है.
और तेरी दीदी भी बहुत खुश रहती है.

इसलिए मैं समय निकालकर उनके घर आता जाता रहता था.
और मेरे माँ, पिताजी ने भी मुझसे कहा है कि उनके घर समय निकालकर जाते रहना. तो उन्हें अपने बेटे की कमी महसूस नहीं होगी.

यह कहानी एक साल पहले की है.

जब मैंने नोटिस किया कि रीमा दीदी का बर्ताव अलग ही लग रहा था. जैसे वह मेरे बदन को ज्यादा ही छूने की और दबाने की कोशिश कर रही थी.
कभी मौका मिलते ही मेरी जांघें सहलाती, कभी आगे से बाहों में लेकर चूत को मेरे लंड पर रगड़ती थी.
कभी पीछे से मुझे ऐसे चिपकती थी कि उसकी चूचियाँ मेरे पीठ पर रगड़ती थी.

अब मुझे उसकी नजर वासना से भरी लग रही थी.

एक दिन जब मैं घर गया तो वह खाना बना रही थी.
उसने गाउन पहना था और आगे ऐप्रन लगा हुआ था.

मुझे देखते ही दीदी बोली- हर्षद, अच्छा हो गया. तुम सही समय पर आए हो. मेरे ऐप्रन की गाँठ खुल गयी है, वो जरा ठीक करो ना!

मैं उसके पीछे खड़े रहकर ऐप्रन की गाँठ बांधने लगा.
तो रीमा दीदी अपनी गांड से मेरे लंड को रगड़ कर बोली- ठीक से बांधना. कहीं गिर ना जाए.

ऐसे ही छेड़छाड़ करके वह शायद मुझे उकसा रही थी.
लेकिन मैं ज्यादा ध्यान नहीं देता था उसकी हरकतों पर … मैं सोचता था कि अनजाने में ऐसा हो जाता होगा.

ऐसे ही दिन बीतते गये.
अब मुझे भी उसकी नजदीकियाँ अच्छी लगने लगी थी.
आखिर मैं ही एक मर्द हूँ.

एक दिन ऐसे ही हमेशा की तरह मैं ऑफिस से घर आया था.
पिताजी के आने के बाद हम लोगों ने खाना खाया.

हम बातें कर रहे थे कि तभी माँ को आँटी का फोन आया कि अंकल की तबीयत खराब हो गयी है, उन्हें अस्पताल ले जाना है, हर्षद को भेज दो.

तभी पिताजी बोले- कार लेकर जाओ और अच्छे से अस्पताल ले जाना हर्षद. अगर कुछ बात है तो मुझे फोन करना.

मैं कार निकालकर उनके घर गया तो आँटी और रीमा दीदी घबराई हुई थी.
मैंने कहा- चिंता मत करो, अंकल को कुछ नहीं होगा.

तब मैंने और रीमा दीदी ने सहारा देकर अंकल को पिछली सीट पर बिठाया, उनके साथ में आँटी बैठ गयी.

दीदी ने घर को ताला लगाया और आगे की सीट पर बैठ गयी और हम निकल पड़े.

आधे घंटे में ही हम अस्पताल पहुँच गये.

मेरे दोस्त के पिताजी का ही अस्पताल था तो अंकल को अंदर लेते ही ट्रीटमेंट शुरु कर दी.

डॉक्टर ने पूरा चेकअप करके बताया- घबराने की कोई बात नहीं है, उनका बी. पी हाई हो गया है, जल्द ही ठीक हो जायेंगे. लेकीन दो दिन इन्हें यहीं रखना पड़ेगा. और हाँ, यहाँ किसी एक को ही रुकना है, ज्यादा लोग नहीं रुक सकते. अगर कोई नहीं रुक सकते हो तो भी हमारी सिस्टर्स सब सम्हाल लेंगी, चिंता की कोई बात नहीं.

लेकिन आँटी बोली- मैं यहाँ पर इनके साथ रहूँगी, तुम दोनों घर जा सकते हो.
इसी दरम्यान रात के 11 बज चुके थे.
तो मैं और रीमा दीदी वहाँ से निकल पड़े.

रास्ते में हम दोनों एक दूसरे से बात कर रहे थे.
दीदी बोली- अच्छा हुआ हर्षद, तुम समय पर आ गये. अब पिताजी की कोई चिंता नहीं. और तुम्हारी पहचान की वजहसे जल्दी से चेकअप और ईलाज शुरु हो गया.

तो मैंने कहा- दीदी, यह तो मेरा कर्तव्य है और मैं कोई पराया हूँ क्या?
दीदी बोली- वो सब ठीक है. तुम बहुत ही अच्छे और हमदर्द हो हर्षद. मैं तुम्हें बहुत पसंद करती हूँ. मुझे तुम्हारी नजदीकियाँ बहुत ही अच्छी लगती हैं.

मैंने कहा- इसका मतलब दीदी?
तो उसने कहा- कैसे बताऊं हर्षद, जब से तुम्हें देखा है, मैं तुम्हें चाहने लगी हूँ, तुम इतने हैंडसम हो कि तुम्हें देखते ही मेरा मन मचल जाता है, मुझे एक अलग सी खुशी मिलती है जब तुम मेरे आसपास रहते हो. मेरा पूरा बदन रोमांचित हो जाता है. तुम्हें देखते ही मेरे मन में ख्याल आता है कि काश तुम मेरे पति होते.

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रीमा दीदी की बात सुनकर मैंने हैरान होकर कहा- यह क्या कह रही हो दीदी? अब तुम शादीशुदा हो और तुम्हारे पति भी कितने अच्छे हैं.
मेरी बात पर दीदी बोली- तुम नहीं समझोगे हर्षद, मैं शादी होकर भी खुश नहीं हूँ. मुझे सभी सुख यहाँ मिल रहा है लेकिन मेरी शारीरिक भूख कौन मिटायेगा? यह दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है. रात को सो नहीं पाती हूँ मैं!
मेरे अंदर की वासना की आग को मैं कैसे ठंडा कर सकती हूँ. उसे तो तुम्हारे जैसा मर्द चाहिए ठंडा करने के लिए हर्षद.

उसकी बात सुनकर मैं सुन्न हो गया था, फिर भी मैंने उसे कहा- तुम चिंता मत करो दीदी, मैं हूँ ना तुम्हारे साथ! सब कुछ ठीक हो जायेगा.

इतने में उसका घर आया, मैंने कार साईड में लगा ड़ी.

हम दोनों अंदर गये तो दीदी ने मुझे पानी दिया.
हमें बहुत प्यास लगी थी.

पानी पीकर मैं वहाँ से निकलने लगा तो रीमा दीदी बोली- मुझे अकेला छोड़कर जा रहे हो हर्षद? मुझे तो डर लगता है अकेली को. आज की रात यहीं सो जाओ ना मेरे साथ!

मैं तो दीदी को ना नहीं कह सकता था और अब मैं भी उसे चाहने लगा था.
तो मैंने कहा- ठीक है दीदी, मैं रहूँगा तुम्हारे साथ आज की रात!

मेरी बात सुन कर दीदी ने खुश होकर मुझे गले लगाकर मेरे होठों को अपने गुलाबी होठों से चूम लिया.

मैं भी उसे बाहों में कसकर चूमने लगा और फिर उसे कहा- दीदी अब छोड़ो … मुझे नहाना है, बहुत थकावट महसूस हो रही है.
तो उसने कहा- हाँ हर्षद मैं भी नहाकर आती हूँ.
और हम दोनों अलग अलग बाथरूम में नहाने चले गये.

पाँच मिनट में ही मैं नहाकर टावल लगाकर मैं बेडरूम में पहुँचा और बाल सुखाकर आईने के सामने खड़ा होकर कंघे से ठीक करने लगा.
तभी रीमा दीदी नहाकर सिर्फ टावल अपनी चूचियों पर लपेटते हुए अंदर आ गयी थी.
मैं उसे आईने में देख रहा था.

उसकी गोरी और गदराई जाँघें पूरी तरह से खुली दिख रही थी.
उसकी आधी, गोलमटोल चूचियाँ देखकर मेरे बदन में आग लगने लगी थी.

वह सीधे आकर पीछे से मुझसे चिपककर लिपट गयी और मेरी गर्दन और पीठ को लगातार चूमने लगी.

उसकी इस छेड़खानी से मेरा लंड तनाव में आने लगा था और मैं भी उसके नाजुक स्पर्श से उत्तेजित हो रहा था.
अब मैं सीधा पलटकर उसे अपनी बांहों में कस लिया.

इसी दरम्यान हम दोनों के टावल खुलकर गिर गये और हम दोनों ही नंगे हो गये थे.

अब रीमा की चूचियाँ मेरे सीने पर दब चुकी थी. नीचे मेरा लंड उसकी गोरी चूत पर दस्तक देने लगा था.
मेरे नंगे बदन के पहले स्पर्श से ही वह काफी उत्तेजित होकर आहें भरने लगी थी.

हम दोनों भी एक दूसरे के साथ चुम्माचाटी करने में जुटे थे.
नीचे मेरे लंड की दस्तक से रीमा की चूत गीली हो चुकी थी.

अब मैं अपने दोनों हाथों से उसकी बाहर निकली हुई, गोरी सी, गदराई गांड को सहलाने लगा तो रीमा मादक सिसकारियाँ भरने लगी थी.
अब उसकी भी कामवासना भड़क उठी थी तो वह एक हाथ से मेरी गांड को सहलाने लगी और दूसरे हाथ से लंड पकड़कर उसका मुआयना करने लगी.

और तभी झट से वह नीचे बैठ गयी.
रीमा अपने घुटनों पर बैठकर दोनों हाथों से मेरा लंड सहलाते हुए बड़ी जिज्ञासा के साथ बोली- हे भगवान! इतना बड़ा लंड … बाप रे! इतना लंबा और इतना मोटा? इतना गोरा भी होता है? आज पहली बार देख रही हूँ. आज तो मेरी चूत की खैर नहीं है.

जैसे जैसे वह सहलाने लगी, वैसे वैसे मेरा लंड और मोटा और लंबा हो रहा था.
उसने दोनों हाथों से उसको दबाकर बोली- यह तो लोहे जैसा कड़क हो गया है हर्षद. तुम बहुत ही भाग्यशाली हो जो तुमने इतना मोटा और लंबा लंड पाया है. और मैं भी भाग्याशाली हूँ कि आज यह मेरी चूत में समाकर सारी खुशियाँ दे सकता है, मेरी बरसों की वासना की आग मिटा सकता है!

इतना कहते हुए वह मेरे लंड के गुलाबी, फूले हुए, नोकदार, स्ट्राबेरी जैसे सुपारे को अपने गुलाबी होठों से चूमने लगी.

उसके होठों का स्पर्श मेरे सुपारे पर होते ही मेरे पूरे बदन में बिजली सी दौड़ने लगी थी और मेरा लंड जोश में आकर कूदने लगा था.
अब रीमा मेरे लंड का सुपारा अपने मुँह में लेकर चूसने लगी थी.

उसने मेरे गुलाबी सुपारे को चूस चूस कर पूरा लाल कर दिया था.
मेरा लंड मोटा होनेके कारण मुश्किल से मेरा आधा लंड उसके मुँह में जा रहा था.

अब उसे सांस लेनेको भी तकलीफ होने लगी थी तो उसने लंड मुँह से बाहर निकाल दिया और गहरी सांसें लेने लगी.

मैंने उसे उठाकर खड़ा कर दिया और उसकी चूचियों को सहलाकर बारी बारी से चूसने लगा.

रीमा दोनों हाथों से मेरे सर को दबाकर अपनी चूचियां चुसवाने लगी और मुँह से स्स स्सस … हा हा हाय … आ आ हूँ हूं … जैसी मादक सिसकारियाँ लेने लगी थी.

अब रीमा कामुक होकर एक हाथ से मेरे लंड को जोर से सहलाने लगी थी.
मैं एक हाथ से उसकी गांड सहलाते हुए गांड की दरार में उंगलियाँ फिराने लगा.

तो वह कसमसाने लगी थी, साथ में मेरा सर अपनी चूचियों पर दबा रही थी.

अब मैंने अपना हाथ उसकी चिकनी और गीली चूत पर रखा तो वो सिहर उठी और मादक सिसकारियाँ लेने लगी.
मैं उसकी चूत को अपनी उंगलियों से सहलाने लगा.

तो रीमा बोली- बस करो हर्षद, अब नहीं सहा जाता मुझसे! जल्दी से अपना मोटा लंड डाल दो मेरी चूत में और बुझा दो उसकी आग को!
उसकी बात सुनकर मेरा लंड भी जोश में आकर फनफनाने लगा था.

तो मैंने रीमा को अपने दोनों हाथों से उठाकर बेड पर लिटाया और मैं उसके ऊपर आ गया.
उसकी कमर के नीचे मैंने तकिया रख दिया ताकि उसकी चूत खुलकर ऊपर आ जाए.

प्रिय पाठको, अब तक की गरम लड़की की वासना की कहानी में आपको मजा आया होगा.
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