कुंवारी पड़ोसन लड़की को चोद के बुर खोला

यह बात आज से 8 साल पहले की है. उस वक्त मैं अपने बाहरवीं के एग्जाम दे रहा था. मेरे घर में मैं और मेरे माता पिता ही थे. हमारे सामने वाले मकान में एक परिवार रहता था. उसमें 6 सदस्य थे- पति पत्नी और उनके चार बच्चे. चार में से तीन तो लड़कियां थीं और एक लड़का.

सबसे बड़ी लड़की कामिनी, उनका भाई पंकज, मंझली बहन अनुराधा, और सबसे छोटी बहन अंजलि थे. अनुराधा और मैं हमउम्र थे और एक ही क्लास में थे.
हमारे फैमिली रिलेशन अच्छे होने से मैं अक्सर उनके यहां बिना रोक टोक के आता जाता रहता था.

Virgin Padosan ki Chudai Kahani में आगे:

अनुराधा मुझसे कुछ महीने बड़ी थी. हम लोग साथ पढ़ते थे. पहले कभी मेरे मन में उसके लिए कुछ गलत नहीं आया था.

फिर मैं भी जवान हो गया था और हम दोस्तों में अक्सर चुदाई की बातें होती रहती थीं

मुझे भी लड़कियों की चूत और चूत चुदाई की बातों में बहुत मजा आने लगा था.

जहां तक अनुराधा की बात है तो वो मुझसे लम्बाई में थोड़ी ज्यादा थी मगर उसका रंग सांवला था.
देखने में भी वो कोई बहुत ज्यादा सुन्दर नहीं थी लेकिन ठीक थी.

जैसे जैसे अनुराधा अपनी जवानी में कदम रख रही थी वैसे वैसे उसके शरीर के बदलाव अब साफ नजर आने लगे थे.
चेहरे का रंग तो वैसा ही था लेकिन उसको छोड़कर शरीर में बाकी सब कुछ बदलने लगा था.

उसके बोबे अब उसके सीने पर उसके सूट में उभरे हुए दिखने लगे थे.
बदन एक खास तरह की शेप लेता जा रहा था. जैसे कि कोई कली जब फूल बनने लगती है तो भंवरे भी उसकी ओर आकर्षित होना शुरू हो जाते हैं.

इसी तरह अंजलि के शरीर में उठ रहे उभार अब जवान लड़कों की नजर अपनी ओर खींचने लगे थे.
ऐसे ही न जाने कब मेरा ध्यान भी उसके बदन की गोलाइयों पर अटकने लगा.

उसकी गांड में कसावट और गोलाई दोनों ही बढ़ रही थीं.
धीरे धीरे मेरे मन में उसके बदन को भोगने के ख्याल आने लगे और मैं उसको चोदने की सोचने लगा था.
अब मेरा मकसद रहता था कि ज्यादा से ज्यादा वक्त उसके साथ ही बीते.

मेरे लिये पढ़ाई का अच्छा बहाना था.
मैं उसी के साथ बैठकर पढ़ाई करता था.
इससे मुझे उसकी चूचियों के करीब होने का मौका मिल जाता था.

कई बार मैं जानबूझकर उसकी चूचियों पर कोहनी से छूने की कोशिश किया करता था.
उसकी गांड पर हाथ लगा देता था और मैं ऐसे दिखाता जैसे मैंने जानबूझ कर नहीं किया हो और अनजाने में हो गया हो.

उस पर उसकी भी कोई प्रतिक्रिया नहीं होती थी.
मेरी इन हरकतों पर उसकी कोई प्रतिक्रिया नहीं होने से मेरा हौसला और बढ़ता गया.

जिस घर में वो लोग रहते थे उसमें उसके पापा के भाइयों का भी हिस्सा था और वो सब बाहर रहते थे.
उनका मकान काफी बड़ा था और उसकी छत पर एक कमरा था और छत बहुत बड़ी थी.

तो वहां एक पुराना कमरा भी था जो बंद ही रहता था.
पुराना कमरा उसके कमरे और बाकी छत के बीच में था जिससे आगे खाली छत पर सीधे कोई देख नहीं पाता था.

हम लोग अक्सर शाम को उस खाली छत पर घूमते थे और मस्ती करते थे.
कई बार मस्ती करते करते मैं उसे पीछे से पकड़ लेता था जिससे मेरा लंड उसकी गांड की दरार में लग जाता था.

इसी बहाने मैं दोनों हाथ उसके दोनों बूब्स पर रख कर उनको मसल देता था.

अब कभी कभी मस्ती करते हुए मैं उसकी चूत को भी सहला देता था. उसके पूरे शरीर में एक करंट सा दौड़ा जाता था.

मुझे अभी तक ये पता नहीं चला था कि वो क्या चाहती है.

मैं इतना तो जानता था कि अगर उसको मेरी हरकतें पसंद नहीं होतीं तो वह इसका विरोध जरूर दिखाती.
मगर उसने कभी मुझसे मेरी हरकतों को लेकर कुछ नहीं कहा और न ही मुझे उसके चेहरे पर कभी ऐसे भाव दिखे कि उसको बुरा लगा हो.

अभी तक मैं कभी उसकी गांड दबा देता था और कभी बूब्स मसल देता था.
मगर अब मुझे और ज्यादा करने की इच्छा होने लगी.
मेरा मन उसकी गांड मारने का करने लगा क्योंकि उसकी गांड बहुत मोटी और गोल थी.

अनुराधा की गांड को देखकर ऐसा मन करता था कि उसकी गांड में खड़े खड़े ही लंड घुसा दूं.
उसकी गांड को चोद चोद कर फाड़ दूं.
मगर मुझे ऐसा कौई मौका या बहाना नहीं मिल रहा था जिससे कि मैं उसको भींच भींचकर गर्म करूं और चुदाई के लिए उकसाऊं.

फिर मुझे एक आईडिया आया.

एक शाम को मैंने उसको और उसकी छोटी बहन अंजलि को छुपम छुपाई खेलने को बोला और वो लोग भी मान गये.
सबसे पहले मेरी बारी आई और मैंने अनुराधा को ढूंढ लिया.

उसको वापस छुपने के लिए बोल कर मैंने पहले उसकी छोटी बहन अंजलि को ढूंढा.
फिर अनुराधा को ढूंढा ताकि अगली बार दाम उसकी छोटी बहन अंजलि पर आए.
यही तो मैं चाहता था.

मैं अनुराधा का हाथ पकड़ कर उसको घर के पीछे वाली सीढ़ियों पर ले गया.
घर का वो एरिया खाली था. वहां कोई नहीं रहता था और कोई आता जाता भी नहीं था.
घर वालों के आने जाने के लिए दूसरी सीढ़ियां थीं.

अनुराधा को मैंने सीढ़ियों के बीच में लाकर खड़ी कर दिया और मैं उसके पीछे खड़ा हो गया.
मैंने उसको बोला- तू देखना कहीं वो इस तरफ न आये.
मेरे कहने पर वो झुककर देखने लगी.

उसकी गांड मेरे सामने थी जो मेरे लंड के ठीक सामने उठी हुई थी.

उसने स्कर्ट पहनी हुई थी जो उसके घुटनों तक थी और झुकने से थोड़ी ऊपर हो गई थी. मेरा लंड तो पहले से उसकी गांड के बारे में सोचकर खड़ा हो चुका था.

अपनी पैंट में खड़े लंड को मैंने उसकी स्कर्ट के ऊपर से ही उसकी गांड पर लगा दिया.
आह्ह … दोस्तो … उसकी मस्त मोटी कोमल गांड पर जब मेरा तड़पता लौड़ा लगा तो मुझे मजा आ गया.

मैं बोला- अंजलि तो नहीं आ रही?
अनु- नहीं, अभी तो नहीं.
मैं- थोड़ी और झुक के देख ना?
वो थोड़ी और झुकी और उसके चूतड़ अब मेरी जांघों पर मेरे लंड के बीच में अच्छी तरह कस गये.

अब बहाने से मैं भी अंजलि को देखने के लिए उसके ऊपर ही झुक गया. मेरा लंड उसकी गांड में सटा था और मेरे हाथ उसकी चूचियों तक पहुंच रहे थे. वो भी जैसे अपना पूरा वजन मेरे ऊपर पीछे की ओर मेरे लंड पर डाल रही थी.

दोस्तो, मेरा लंड तो झटके दे देकर फटने को हो गया.
ऐसा मन किया कि घोड़े की तरह इसके ऊपर चढ़ जाऊं और इसके छेद में अपना लंड उतार दूं.

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बार बार उसकी गांड पर लंड के झटके लग रहे थे.
शायद उसको भी इस सब में मजा आ रहा था.

फिर भी मैं वापस से खड़ा हो गया. धीरे से फिर मैंने हिम्मत करके उसकी स्कर्ट को ऊपर कर दिया.

अब मुझे अनुराधा की नीली पैंटी दिखने लगी.
मैंने उसकी पैंटी के ऊपर से ही उसकी गांड और नीचे चूत तक सहला दिया. वो एकदम से उचकी और पीछे मुड़कर देखने लगी.

मेरी सांसें तेज हो गयी थीं और मेरी नजरों में हवस पूरी भरी हुई थी.
मैं जैसे कह रहा था- बस एक बार करने दे … एक बार प्लीज।
वो जैसे मेरे इशारे को समझ गयी और वापस आगे की ओर झुक गयी.

मैं नीचे बैठा और उसकी पैंटी के ऊपर से ही उसकी गांड में मुंह देकर उसको चाटने लगा. फिर मैंने उसकी गांड की दरार में फंसी उसकी पैंटी को हल्की से उसकी जगह से खींचकर हटा दिया.

उसकी चूत को देखा तो वो गीली सी लगी.
शायद मेरे लंड के छूने के आनंद में उसकी चूत ने भी पानी छोड़ना शुरू कर दिया था.

मैं उसकी चूत को सूंघने लगा और उसके मुंह स्स्स … अम्म … करके एक सिसकार निकली.
तो मैं जान गया कि मामला गर्म है.

मैं खड़ा हुआ और फिर मैंने अपने लंड को जिप खोलकर पैंट से बाहर निकाल लिया. मैंने उसकी पैंटी को हटाकर उसकी गांड के छेद पर लंड को रगड़ने लगा.

वो धीरे से फुसफसाकर बोली- क्या कर रहा है … अंजलि देख लेगी तो?
मैं- इसीलिए तुझे आगे देखने को बोला है. जैसे ही वो आती दिखाई दे, मुझे बता देना.
वो बोली- हम्म!

अब बात साफ थी. उसको मजा आ रहा था और मैं इस मौके का पूरा फायदा उठाना चाहता था.

मैंने पेंटी के ऊपर से लंड उसकी गांड की दरार में सेट किया और 2 झटके मारे.

अब सब सामने था.
वो भी मेरा लंड अपनी चूत में लेना चाहती थी लेकिन कुछ बोल नहीं पा रही थी.
मैं भी बिना बोले ही उसे चोदना चाहता था.

मैंने आगे देखने के बहाने से उसके बूब्स को पकड़ कर दबाया और पूछा- वो आ रही है क्या?
उसने बोला- नहीं … आएगी तो मैं बोल दूंगी. तू पीछे ही रहना.

मैं जानता था कि अंजलि अकेली इतना पीछे नहीं आ सकती थी.
वो रात में डरती थी और ये बात मुझे पता थी. इसी कारण मैं इतना पीछे आया था और निश्चिन्त था कि यहां पर अनु की चुदाई हो सकती है.

अब मैं अनुराधा की गांड और बोबों से खेलने लग गया. मुझे अब नशा हो गया था चोदने का और उसको भी. वो भी गर्म हो गई थी.

मैंने पीछे से हाथ डाल कर उसकी चूत को दबाया और उसके कान में बोला- डाल दूं क्या अंदर आज?

उसने एक हाथ पीछे लाकर मेरे खड़े, तड़पते, गर्म लंड को अपने हाथ में पकड़ लिया जो मेरी जिप से बाहर निकला हुआ था.

उस वक्त हमें सेक्स का ज्यादा ज्ञान नहीं था और लंड को मुंह में लेने जैसी बातों से अनजान ही थे.

थोड़ी देर उसने मेरा लंड अपने हाथ से सहलाया और बोली- इतना बड़ा अंदर कैसे जायेगा?
मैं बोला- ट्राई तो करने दे यार … चला जायेगा.

ऐसा कहकर मैंने उसकी पैंटी नीचे कर दी.

अब उसकी गांड जांघों तक नंगी थी हो गयी थी.
मैं उसकी नंगी गांड को देखकर पागल हो गया. मन किया कि इसको इतनी चोद दूं कि ये चलने लायक न रहे.

क्या मस्त गांड थी उसकी! मन किया कि इसको खा जाऊं.

फिर मैंने उसकी गांड पर एक किस किया और फिर अपने लंड को उसकी गांड के छेद पर लगाने लगा.

वो उचक कर बोली- वहां नहीं, नीचे वाले छेद में डाल ले. गांड को बाद में देख लेना.
मैंने सोचा कि अब तो ये गर्म हो गयी है. चूत मरवाने के लिए तैयार है तो गांड भी मरवा लेगी.

मैं थोड़ा पीछे हुआ और थोड़ा झुककर उसकी चूत के छेद पर लंड को टिका दिया.
मैं घुसाने लगा तो लंड फिसलने लगा.

उसकी चूत टाइट थी और काफी छोटी थी.
मगर दोस्तो, ऐसा जोश था कि बस किसी तरह फंसा देना चाहता था उसकी चूत में लंड को.

अपने हाथ पर मैंने ढे़र सारा थूका और फिर लंड पर मल लिया.

उसके बाद दोबारा से थूका और उसकी चूत पर रगड़ दिया. फिर लंड को उसकी चूत पर टिकाया और उसके मुंह पर हाथ रख कर मैंने एक जोर का झटका दे दिया.

मेरा आधा लंड उसकी चूत में जा घुसा.
और वो तिलमिला गयी.

मेरा हाथ उसके मुंह पर लगा था और वो हूंऊऊ … हूँऊऊ … की दर्द भरी आवाज कर रही थी. आह्ह … मैं तो जैसा स्वर्ग में पहुंच गया था.

मेरा कुंवारा लंड उसकी कुंवारी चूत के गर्म रस में अंदर जाकर नहा गया था.
ऐसी फीलिंग मुझे कभी नहीं मिली. इतना मजा आता है चूत में लंड देकर ये मुझे उस दिन पहली बार पता चला.

हाथ उसके मुंह पर कसा होने की वजह से उसकी आवाज नहीं निकली. उसकी आंखों से आंसू आ रहे थे.

वो एक हाथ से मुझे पीछे धक्का दे रही थी ताकि मेरा लंड बाहर आ जाये. मगर मैं उसको दबोचे रहा.

थोड़ी देर के बाद वो शांत हो गई. मुझे भी डर लगा क्योंकि उसकी चूत से फिर खून भी आया.
मगर दोस्तो, जब चोदने का भूत सवार होता है तो ये सब नहीं दिखता.

अब और थोड़ी देर रुकने के बाद मैं धीरे धीरे उसे पीछे से चोदने लगा.

मेरा लंड अब आगे पीछे होता हुआ उसकी चूत की गर्मी ले रहा था और अपनी गर्मी उसकी चूत को दे रहा था.
उसे भी अच्छा लगने लगा.

2-4 शॉट के बाद मेरा पूरा लंड अन्दर बाहर होने लगा.
मैंने उसको कस कर भींच लिया और उसकी चूची दबाते हुए उसकी गर्दन पर किस करने लगा.

नीचे से मेरा लंड उसकी चूत में अंदर बाहर होता रहा.

दो-तीन मिनट के बाद मुझे महसूस हुआ कि मेरे लंड पर काफी सारा गर्म पानी आ गया.
शायद वो झड़ गयी थी.

चुदाई की पहली फीलिंग लेकर मैं भी ज्यादा देर नहीं रुक पाया और उसके कुछ पल बाद ही मेरा माल भी निकल गया.
मैंने उसको कस कर अपनी बांहों में भींच लिया और पूरा लौड़ा अंदर तक घुसा दिया.

लंड खाली होते ही मैं भी शांत हो गया.

वो पलट कर मेरे सीने से लिपट गयी और हम नीचे से नंगे ही दोनों एक दूसरे के चिपक गये.
बहुत अच्छी फीलिंग आ रही थी.
मैंने चूत मार ली थी आज.

हमें 15 मिनट हो चुकी थी यहीं खड़े हुए.
अंजलि हमको बिना ढूंढे हुए ही जा चुकी थी.

फिर हमने अपने कपड़े ठीक किये और मैंने उसको जाने दिया.

अंजलि से हमने बहाना कर दिया कि हम उसके इंतजार में छुपे रहे.

फिर मैं अपने घर आ गया.

उसके बाद मैंने अनुराधा को कई बार चोदा. उसकी गांड भी चोदी.
उसकी बड़ी बहन जो मुझसे लगभग 4–5 साल बड़ी है उसको भी चोदा और उसकी छोटी बहन की चूत भी चोदी.

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