ननदोई से चूत की प्यास मिटवाई-1

सेक्स विद सिस्टर इन लॉ की कहानी है यह. मैं विधवा हूँ. मेरे शरीर की भूख दिन पर दिन बढ़ती जा रही थी। एक बार मेरी ननद का पति किसी काम से मेरे घर आया.

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नमस्कार दोस्तो, मेरा नाम कविता है। मैं 42 साल की हूं; दिल्ली की रहने वाली हूं। यहां मैं अकेली रहती हूं।

मेरे 2 बच्चे हैं और दोनों नैनीताल में पढ़ते हैं और वहां हॉस्टल में रहते हैं।

मेरे पति की मौत को 6 साल बीत चुके हैं। मेरे पति का एक बिजनेस था, जिसे अब मेरा भाई देखता है।

पति के जाने के बाद में बिल्कुल अकेले ही गई थी; पर वक़्त के साथ मैंने जीना सीख लिया।

लेकिन मेरे शरीर की भूख दिन पर दिन बढ़ती जा रही थी। पहले शायद बच्चों की देखभाल में इतना व्यस्त हो गई थी कि कभी अपने अकेलेपन पर ध्यान है नहीं दिया।
इस वजह से पति के मरने के 6 साल बाद तक मैंने कभी सेक्स ही नहीं किया।

फिर वो दिन आया जब मुझे सेक्स मिला और ऐसा सेक्स जो शायद ज़िन्दगी में कभी ना मिला।

बात सर्दियों की है. मेरी ननद जो बंगलौर में रहती है, उसका मेरे पास कॉल आया।
उसने बात बात में मुझे बताया कि उसके पति सागर को दिल्ली आना है किसी काम से … तो वो दो दिन मेरे यहां ही रहेगा।

सागर का बंगलौर में अपना जिम हैं और वो यहां दिल्ली में एक जिम खोलना चाहता है।
इस कारण से उसकी कुछ इनवेस्टर के साथ मीटिंग है।

मेरी ननद मेरे पति से छोटी है। सागर की उम्र 36 साल की है।

एक हफ्ते बाद वो दिन आ गया जब सागर को दिल्ली आना था। मैंने एयरपोर्ट पर गाड़ी भेज दी।

दिल्ली आने के बाद सागर ने मुझे कॉल किया और बोला कि वो शाम को घर आएगा। अभी वो एयरपोर्ट से सीधा मीटिंग के लिए जा रहा है।
मैंने भी अपने ड्राइवर कि बोल दिया के वो पूरा दिन सागर के साथ है रहे ताकि उसे आने जाने में कोई परेशानी ना हो।

सागर शाम को 6 बजे आस पास घर वापस आया।
जैसे ही वो गाड़ी से उतरा में तो उसे देखते ही रह गई।
देखा तो मैंने सागर को बहुत बार था. पर शायद इस बार मेरी नजर ही दूसरी थी.

वो 6 फीट लंबा, भरी हुई बॉडी; जो भी लड़की उसे देख ले वो अपनी चूत को खुजाए बिना नहीं रह सकती।
मेरा भी हाल कुछ ऐसा है हो गया था।
लेकिन मैंने अपने ऊपर कंट्रोल किया।

फिर सागर मेरे पास आया, मुझे नमस्ते करी और हम न प्यार से एक दूसरे को गले लगा के स्वागत किया।
मैंने सागर को आते है नाश्ता करवाया और फिर उसे बोला कि वो फ्रेश हो जाए।

करीब आधे घंटे बाद सागर कमरे से बाहर आया तो वो शॉर्ट्स में था। उसकी छाती बनियान फाड़ के बाहर आ रही थी, बाजू भी फूली हुई थी और टांगें भी बिल्कुल शेप में थी।
ऐसे बॉडी वाले बंदे बहुत कम मिलते हैं।

हम दोनों थोड़ी देर बैठे और बात करी एक दूसरे से।
उसने बताया कि कैसे उसकी मीटिंग सफल रही और कल भी उसे जाना हैं वहां!
मैंने भी अपनी ननद रूही की खबर ली उससे।

हम दोनों 4 साल बाद मिल रहे थे तो बातों बातों में वक़्त कब बीत गया पता है नहीं चला।

मैंने नौकर को बोल के डिनर लगवा दिया और फिर हम दोनों ने डिनर किया।
डिनर के बाद सागर अपने कमरे में चला गया और मैं अपने काम में व्यस्त हो गई।

करीब 10 बजे नौकर भी चले गए।
अब घर में सागर और मैं अकेले थे।

मुझे लगा सागर थका हुआ होगा तो सो गया होगा। मैंने अपने कमरे में आकर कपड़े बदल कर नाइटी पहन ली। फिर शीशे के सामने खड़े होकर अपने आपको निहारने लगी।

मैं अपने बूब्स को अपने हाथों से दबा के देखने लगी जिनका साइज 38 था।
गांड भी कम नहीं थी मेरी! 44 का साइज था और बाहर निकले हुए चूतड़।

मैं अपने शरीर को निहार ही रही थी कि अचानक दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी।
मैंने दरवाजा खोला तो देखा सागर खड़ा हुआ था।

जैसे ही सागर ने मुझे देखा तो मैंने उसकी आँखों में एक अलग चमक महसूस करी।
शायद वो मेरे बदन को नाइटी में देख के निशब्द रह गया हो।

फिर कुछ देर बाद बोला- माफ करना भाभी, मुझे नींद नहीं आ रही थी तो सोचा आपके साथ बैठ के बात कर लूं। पर अगर आप सोना चाहती हो तो कोई नहीं हम कल बात कर लेंगे।
मैं- अरे नहीं सागर, मैं तो बस ऐसे ही रूम में आ गई थी। चलो बाहर बाल्कनी में बैठ के बात करते हैं।

सागर से मैंने वाइन के लिए पूछा तो उसे ने हां कर दी.
और मैंने वाइन 2 ग्लास में डाली और बाहर बाल्कनी में बैठ गए। हम दोनों के कुर्सी बराबर में थी।

सागर- भाभी, आपको देख के हमें बहुत हिम्मत मिलती है। कैसे आपने सब कुछ खोने के बाद भी अपने आपको टूटने नहीं दिया और अच्छे से सब कुछ संभाल लिया। घर, बच्चे, करोबार! मैं और रूही हमेशा आपको देख के गर्व महसूस करते हैं।

मैं- सागर यही ज़िन्दगी है। किसी के जाने से ज़िन्दगी नहीं रुकती। अपने आपको खुद संभालो और आगे बढ़ जाओ। वैसे तुम और रूही वहां बंगलौर में खुश तो हो ना?
मेरे पूछने पर सागर खामोश हो गया।

मै- सागर क्या हुआ? खामोश क्यों हो गए। क्या तुम लोग वहां खुश नहीं हो? कोई परेशानी है तो मुझे बताओ, मैं मदद करूंगी। आखिर शिवम् की मौत के बाद तुम दोनों मेरी ज़िम्मेदारी हो।

सागर वाइन पीते हुए बोला- भाभी, सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा है। रूही बहुत खुश हैं वहां! और अब तो हमारा बेटा अभिनव भी है, जिसने खुशियां दुगनी कर दी हैं।

मैं- और तुम, क्या तुम खुश हो?
सागर- पता नहीं भाभी, पर अभिनव के जन्म के बाद रूही बदल गई है। वो प्यार जो मुझे चाइए वो मुझे उससे नहीं मिल पाता। हमेशा घर के काम, बच्चे की देखभाल! शायद अब यही उसकी लाइफ है। जो रूही का प्यार था मेरे लिए अब वो कहीं खो गया है।

मैं समझ गई थी सागर की तकलीफ़ को।
शायद यह भी उन मर्दों की तरह ज़िन्दगी जी रहा है जो अपनी वाइफ के साथ रहते तो हैं पर वो प्यार और जरूरत के लिए बाहर ही सहारा ढूंढते हैं.

मैं- सागर मैं समझ सकती हूं कि प्यार के बिना ज़िन्दगी कैसे अधूरी हो जाती है। मैं यही ज़िन्दगी जी रही हूं। और मैं नहीं चाहती कि तुम ऐसे ज़िन्दगी जियो. इसलिए मैं रूही से बात करूंगी।

सागर- नहीं भाभी, ऐसा मत करना, वरना उसे लगेगा कि मैंने आपसे उसे बुराई करी है। आपने सही कहा शायद यही लाइफ है। वैसे भाभी, आप कई साल से अकेली हो. क्या आपको कभी किसी की जरूरत महसूस नहीं हुई? क्या आपको नहीं लगता कि आपको भी जीना चाहिए। वो प्यार आपको भी तो चाहिए।

अब चुप रहने की बारी मेरी थी।

थोड़ी देर चुप रहने के बाद मैं बोली- सागर कमी तो बहुत महसूस होती है। 6 साल से अधूरी ज़िन्दगी जी रही हूं। सब कुछ है मेरे पास आज! पर फिर भी अकेली हूं।

सागर- भाभी, अगर बुरा ना माने तो पूछ सकता हूं कि क्या भईया के जाने के बाद आपने कभी किसी के साथ सेक्स नहीं किया?
मैं- नहीं सागर, समाज और ज़िम्मेदारी के डर से कभी हिम्मत ही नहीं पड़ी।

सागर- क्या आपका मन नहीं करता? आपको पूरा हक है खुश रहने का! और अपनी जरूरत को पूरा करने में डर कैसा?

इस बात के बाद हम दोनों के बीच खामोशी पसर गई।
मैं कुछ नहीं बोली।

करीब एक मिनट बाद मैंने अपने हाथ के ऊपर सागर का हाथ महसूस किया।
मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

फिर अचानक से सागर ने मेरे हाथ को पकड़ लिया; मेरे पूरे शरीर में करंट दौड़ गया।

मुझे मेरी ननद का ख्याल आया और मैंने हाथ को छुड़ा के वहां से उठ गई और अपने कमरे में आ कर कुण्डी लगा ली।

मेरी धड़कन बहुत तेज चल रही थी।
मैं पलंग पर लेट गई और अपने हाथ को अपनी चूत पर रख दिया।
बहुत शांति मिली अपनी चूत को सहलाते हुए।

कुछ देर बाद दरवाजे पर दस्तक हुई।
मैं समझ गई थी कि यह सागर ही है।
लेकिन कुछ झिझक के बाद मैंने दरवाजा खोल दिया।

सागर बाहर खड़ा हुआ था- माफ करना भाभी, मैं आप का दिल नहीं दुखाना चाहता था। पता नहीं कैसे मैंने यह सब कर दिया। आप मुझे माफ कर दीजिए।

वह बोल ही रहा था कि मैंने उसे अचानक से होंठों पर चूम लिया।

शायद मेरे इस अचानक चुम्बन से वो हैरान था.
लेकिन कुछ पल बाद वो मुझे चूमने लगा।

हम दोनों एक दूसरे को ऐसे चूम रहे थे जैसे कि बहुत दिन से प्यासे हों।
चूमते चूमते वो मुझे बिस्तर पर ले आया और बेड पर पटक कर मेरे ऊपर आ गया और जोर जोर से मेरे होंठों को चूमने लगा।

मैं भी उस का पूरा साथ दे रही थी। कभी मेरी जीभ उसके मुंह में और कभी उसकी मेरे मुंह में।
ऐसे करीब 5 मिनट तक चलता रहा.

फिर सागर ने अपना हाथ मेरे चूचे पर रखा और उसे दबाने लगा।
मेरी सिसकारी निकल गई।

फिर वो उठा और मेरी नाइटी को निकाल दिया। मैं अब बस ब्रा और कच्छी में उस के सामने लेटी हुई थी।

मेरे शरीर को वो देखता ही रह गया और बोला- भाभी सच में आप कयामत हैं। मैंने ऐसा शरीर आज तक नहीं देखा। आपके चूचे आपकी ब्रा को फाड़ के बाहर आ रहे हैं.
और यह बोलते ही उसने अपना मुंह मेरे चूचों के बीच में रख दिया और सूंघने लगा मेरे वक्ष की खुशबू को।

फिर उसने मेरी ब्रा को अलग कर मेरे दोनों चूचों को रिहा कर दिया और मेरे मलाई जैसे चूचे अपने हाथों से दबाने लगा।

मैं- सागर, खा जाओ अपनी भाभी के चूचों को। बहुत दिन से तड़प रहे हैं ये एक मर्द के लिए!

मित्रो, मेरी सेक्स विद सिस्टर इन लॉ की कहानी आपको पसंद आ रही होगी.
अगले भाग में आप मेरी पूरी चुदाई का ब्यौरा पढ़ पायेंगे.

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सेक्स विद सिस्टर इन लॉ की कहानी जारी रहेगी.

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