हवेली का चौकीदार- 2

लाइव देसी चूत चुदाई देखी मैंने अपने गाँव की हवेली के पिछवाड़े में जहां हमारा चौकीदार पड़ोस की एक जवान भाभी की चूत मार रहा था. आवाजें सुन कर मैं वहां पहुँच गयी थी.

कहानी के पहले भाग
चौकीदार ने मेरी लाइव चुदाई देखी
में अपने पढ़ा कि मैंने अपने पति के साथ गाँव आई और अपनी हवेली में रुकी.
रात को मेरा मन लंड लेने का हुआ तो मैंने पति को गर्म किया और हवेली के आंगन में चुदाई का मजा लेने लगी.
तभी मैंने देखा कि हवेली का चौकीदार छत से हमारी चुदाई देख रहा था.
मुझे इस बात से बहुत उत्तेजना हुई. मैंने अगले दिन फिर से यही किया.

अब मेरा मन चौकीदार को पटाकर उसका लंड खाने का हो गया था.

तो मैंने क्या कौतुक किये, पढ़ें इस Live Desi Chut Chudai कहानी में!

नहाने बैठी तो देखा कि साबुन खत्म हो गया है.
“तुम मेरे लिए नहाने वाला साबुन ला दो।” यह कहकर मैंने राजू के हाथ में 100 का नोट रखा।

राजू ने मुस्कुरा कर कहा- वैसे आप जैसी गोरी गोरी भौजाई को साबुन में मजा नहीं आयेगा, कहो तो दूध भिजवा दूं, उसी में नहा लीजिए, आप का गोरा बदन और निखर जाएगा।
मैंने कुछ नहीं कहा और हंसकर टाल दिया।

फिर राजू किराने की दुकान से साबुन लाया और बाकी बचे पैसे मुझे लौटाने लगा तो मैंने मना कर दिया।
मैंने बाकी के 80 रुपए उसकी जेब में डाल दिए और फिर मटकते हुए अन्दर की तरफ चल दी।

पीछे से राजू भी आ गया।

मैंने कहा- क्या हुआ राजू, कोई काम है क्या?
राजू ने कहा- भौजाई, आज आंगन में झाड़ू नहीं लगी है, सोच रहा हूं कि लगा दूं।
मैंने कहा- ठीक है, लगा दो तब तक हम नहा कर आते हैं।

मैंने अपने कपड़े आंगन में ही पड़ी खाट पर रख दिए थे जिनमें मेरी साड़ी, ब्लाउज, पेटीकोट, ब्रा और पैंटी भी थी।
स्नानागार आंगन में ही बना था इसलिए मैंने पानी भरा और फिर नहाने के लिए अंदर चली गई।

स्नानघर का दरवाज़ा लकड़ी का था और उसकी दरारें ऐसी थी कि बाहर का नजारा तो साफ दिखता था लेकिन बाहर का कोई भी अन्दर नहीं देख सकता था।

मैं नहाने लगी और फिर राजू आंगन की सफाई करने लगा।
कुछ देर में सफाई हो गई और राजू जाकर खाट पर बैठ गया जहां मेरे कपड़े रखे थे।

राजू ने मेरे कपड़ों का मुआयना शुरू किया और एक एक कर के मेरे कपड़ों को देखने लगा।
मेरी ब्रा को हाथ में लेकर उसने उसे सूंघना शुरू किया।

मैं दरवाजे की दरारों से ये नजारा देख कर मन ही मन हंसे जा रही थी।
इसी तरह उसने मेरी पैंटी को भी सूंघा।

कुछ देर तक ऐसे ही खेलने के बाद उसने कपड़े रख दिए और फिर खाट पर लेट गया।

मैं वैसे ही भीगी हुई गुसलखाने से निकली और जाकर राजू के सामने आ गई।

मेरा पेटीकोट मेरे जिस्म पर चिपका हुआ था और मेरे निप्पल मेरे पेटीकोट पर से झलक रहे थे।

मैंने कहा- राजू, उठो, यहां मेरे कपड़े रखे हुए हैं।
राजू ने कहा- भौजाई आप ऐसे ही अच्छी लग रही हो, कपड़े पहन कर खूबसूरती मत बिगाड़ो।

मैंने राजू के गाल पर एक चपत लगाई और कहा- धत्त बदमाश, तेरे भईया को पता चला तो देख लेना।

राजू- भईया को बताएगा कौन? मैं तो नहीं बताने वाला और अच्छी भौजाइयां अपने देवर की शरारतें पति को नहीं बताती, ये उन दोनों के बीच की बात होती है, क्यूकी भौजी पे आधा हक तो देवर का भी होता है ना!
मैंने कहा- तुझसे बातों में कोई नहीं जीत सकता।

यह कहकर मैंने अपने कपड़े उठाए और अन्दर जाकर पहनने लगी।

शाम को क्योंकि मैं घर पर अकेली थी इसलिए आज मैं आंगन में अकेली ही थी।

खाना पीना करने के बाद मैं सोने की तैयारी में थी।

रात को 10 बजे थे और मैं सिर्फ़ पेटीकोट और ब्लाउज पहन कर लेटी हुई थी।

मुझे ठीक से नींद नहीं आ रही थी और दिल भी नहीं लग रहा था।

रात के 12 बजे मुझे कुछ आवाजें सुनाई दी जो हवेली के पीछे से आ रही थी।

चांदनी रात थी इसलिए मैंने कोई टॉर्च नहीं ली और चुपके से निकल कर गौशाला के पास आ गई।

अंदर से किसी लड़की की आहें भरने की आवाज आ रही थी।
बीच बीच में राजू के गाली गलौज करने को आवाजें भी आ रही थी।

मैं कान लगाकर सुनने लगी।
अंदर चुदाई चल रही थी।

मैं गौशाला की दीवार के ओट में खड़ी होकर ये सब देख रही थी।

नीचे जमीन पर पुआल बिछी थी और उसी पर राजू एक लड़की को चोद रहा था।
उसके गले में मंगलसूत्र पड़ा था इसलिए मैंने अंदाजा लगाया कि यह कोई शादीशुदा औरत है।

राजू बहुत जोर से उसे चोद रहा था और लड़की खूब मज़े से आहें भर रही थी।

थोड़ी देर बाद राजू के झड़ने का समय आया तो उसने उस औरत के भीतर ही अपना बीज छोड़ दिया।

दोनों हांफ रहे थे और फिर राजू पेशाब करने के लिए उठा।

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मैं जरा किनारे हो कर छिप गई और राजू मेरे पास से गुजर कर निकल गया।

राजू के जाने के बाद मैंने फिर से गौशाला में देखा।

वह औरत पड़ी हाँफ रही थी और अपने ब्लाउज से अपनी चूत से बहता वीर्य साफ़ कर रही थी।

मेरा ध्यान उसी पर था कि अचानक किसी ने पीछे से मेरा मुंह बन्द कर दिया और फिर कमर में हाथ डाल कर मुझे अपने काबू में कर लिया।
मैं सहम गई और मारे डर के मेरी घिग्घी बंध गई।

वह मुझे उठा कर गौशाला से दूर दीवार के पास ले गया।
उसने मेरा मुंह दीवार की तरफ कर दिया और मेरे पीछे खड़ा हो गया।

इस दौरान उसने मुझे अच्छे से जकड़ रखा था और मैं चाहकर भी कुछ भी बोलने की हालत में नहीं थी।

तभी मेरे कानों में धीरे से आवाज आई- यहां क्या कर रही हो भौजी?

यह राजू था और वो इस वक्त सिर्फ एक तौलिया लपेटे हुए था।

उसकी आवाज सुनकर मैं जरा शांत हुई और धीरे से कहा- नींद नहीं आ रही थी इसलिए सोचा कि देखूं तुम क्या कर रहे हो? बस इसीलिए आई थी।
राजू ने कहा- हम सीमा भौजी की प्यास बुझाने में व्यस्त थे, कोई काम है क्या आपको हमसे?

उसने अब मेरे मुंह पर से हाथ हटा लिया और मेरी गर्दन पर फिराने लगा।

उसका बायां हाथ मेरी कमर को जकड़े हुए था और मेरे नितम्ब उसके लंड पर से टकरा रहे थे।

मैंने कहा- काम कुछ नहीं है, मैं बस यहां से गुजर रही थी इसलिए रुक गई।
राजू ने मुस्कुरा कर कहा- और आप मेरी चुदाई देखने के लिए रुक गई।
यह कहकर उसने अपनी पकड़ मजबूत कर ली।
उसकी गर्म सांसें मेरे कान से टकरा रही थी।

मैंने कहा- ये लड़की कौन है?
राजू बोला- ये दीनू काका की बहू है, पति कमाने के लिए शहर गया है इसलिए इसका ख्याल मुझे रखना पड़ता है।
यह कहकर उसने मेरे गर्दन से नीचे क्लीवेज को सहलाना शुरू कर दिया।

राजू की बात में एक कामुक भावना थी।

मैंने पूछा- ये रोज तुम्हारे साथ सोने आती है?
राजू ने कहा- नहीं, हफ्ते में एक दो बार इसकी गर्मी निकालता हूं।

अब राजू मेरे नितम्बों से और चिपक गया और मुझसे पूछा- कैसी लगी आपको मेरी ठुकाई?
मैं भला क्या कहती!
मैंने कहा- वो मैं कुछ देख नहीं पाई इसलिए मुझे नहीं पता!

राजू ने अब अपना हाथ मेरे ब्लाउज पर फिराना शुरू किया और कहा- कहो तो दिखा दूं?
मैंने कहा- कैसे, सीमा मान जायेगी?
राजू ने कहा- टेंशन मत लो भौजाई, हम हैं ना, बस एक छोटी सी शर्त है मेरी?

मैंने पूछा- क्या शर्त है तुम्हारी?
राजू ने कहा- आपने कपड़े बहुत पहन रखे हैं, इनको कम करना पड़ेगा।
मैं बोली- मतलब? मैं कुछ समझी नहीं?

राजू बोला- अरे तुम इतना सब देखोगी तो मुझे भी तो कुछ देखने को मिलना चाहिए ना, ये ब्लाउज और पेटीकोट हटाओ और ब्रा पैंटी में चलो मेरे साथ!

मैं कुछ न बोल सकी और दीवार की तरफ मुंह करके चुपचाप खड़ी रही।

राजू ने मुझे अपनी ओर घुमाया और फिर मुझसे पूछा- क्या कहती हो भौजी? मंजूर है?
मैंने कोई जवाब न दिया तो राजू ने खुद ही मेरे पेटीकोट का नाड़ा खींच दिया और मेरा पेटीकोट सरसरा कर नीचे गिर गया।

मैं शर्म से गड़ी जा रही थी।

अब राजू ने अपने हाथ मेरे ब्लाउज पर रखे और फिर एक एक कर के उसका हुक खोलने लगा।

कुछ ही देर में मेरा ब्लाउज भी जमीन पर पड़ा था और मैं ब्रा पैंटी पहन कर उसके सामने खड़ी थी।

राजू ने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा और कहा- बिल्कुल हिरोइन लगती हो भौजी तुम तो! पता नहीं भईया तुमको छोड़कर कैसे रह लेते हैं।

उसने मेरी कमर में हाथ डाल दिया और फिर मुझे अपने साथ गौशाला के बाहर ले आया।

राजू ने कहा- भौजी, जब मैं सीटी बजाऊं तो अंदर आ जाना।
मैं हां कहा और फिर राजू अंदर सीमा के पास चला गया।

सीमा के सामने आते ही उसने अपनी तौलिया उतार दिया और पूरा नंगा हो गया।
उसका सांवला कसरती बदन मादाओं को रिझाने के लिए पर्याप्त था।

उसने सीमा की आंखों पर उसी की साड़ी से पट्टी बांध दी और फिर उसके मुंह में अपना लंड डाल दिया।
फिर सीटी बजाई तो मैं धीरे से आकार पुआल के पास बैठ गई।

अब मैं एक एक नजारे को बड़े ध्यान से देख रही थी।

सीमा राजू के काले लिंग को बड़े प्यार से चूस रही थी जैसे सालों बाद उसे चूस रही हो।

राजू भी अब मुझे दिखा दिखा कर उसका मुंह चोद रहा था।

कुछ देर बाद राजू ने सीमा से कहा- साली सिर्फ लंड ही चूसेगी क्या? मेरे टट्टे कौन चूसेगा बहन की लौड़ी?”
यह कहकर उसने सीमा के मुंह में अपने टट्टे ठूंस दिए।

सीमा की आंखें बंद थी इसलिए उसे मेरी मौजूदगी का अहसास नहीं था।

इस तरह कुछ देर तक तक उसे टट्टे चुसवाने के बाद राजू ने सीमा को कुतिया बना दिया और उसके पीछे आकर उसकी चूत पर लंड रगड़ने लगा।

सीमा के मुंह से आह और सी सी की आवाजें आ रही थी।

कुछ देर उसकी चूत सहलाने के बाद राजू ने लंड अन्दर डाल दिया।
सीमा के मुंह से एक मीठी आह निकली और वो राजू की ठुकाई में मस्त होने लगी।

राजू बीच बीच में उसकी गांड पर चाटे लगाते जा रहा था और साथ ही गंदी गंदी गालियां भी दे रहा था- आह साली, छिनाल, चूत में लंड घुसा तो इतना चिल्ला रही है, जब तेरी गांड मारूंगा तब क्या होगा?

मैं तो ये सोचकर ही डर गई कि जब ये सांड गांड मारने पर आयेगा तब क्या होगा।
इसी तरह वो मुझे दिखा दिखा कर सीमा को चोदता रहा।

यह क्रम बहुत देर तक चला और फिर राजू के झड़ने का समय आया तो उसने अपना लंड सीमा के मुंह में दे दिया और वही झड़ गया।
सीमा उसका पूरा वीर्य गटक गई।

अब उसके चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे।
इस दौरान सीमा भी दो दफा झड़ गई थी।

अब मैंने जाने में ही अपनी भलाई समझी।
मैं चुपके से निकल गई और बाहर पड़े अपने कपड़े उठाकर अपने बिस्तर पर आ गई।

देसी चूत चुदाई लाइव देख कर अब तक मेरी सांसें तेज हो गई थी और मैं भी काफ़ी गर्म थी इसलिए मैं गुसलखाने में गई और जाकर उंगली की, तब मुझे कुछ शांति मिली।

सीमा की घमासान चुदाई देखकर अब मेरे दिल में भी राजू से चुदने की लालसा बढ़ गई थी।

अगली सुबह मैं फिर से पेटीकोट में ही राजू के पास गई।

राजू ने मुझे देखा और कहा- का हुआ भौजाई, आज फिर साबुन खत्म हो गया क्या?
मैंने कहा- नही, शैंपू खत्म हुआ है। मेरे लिए शैंपू ला दो।

राजू ने पैसे लिए और जाकर शैंपू ले आया।
मैंने शैंपू लिया तो राजू ने पूछा- भौजाई, कल नींद तो आई थी ना आपको? कहीं रात भर करवटें तो नहीं बदलनी पड़ी?

मैं जोर से हंसी और धत्त बोल कर अंदर की तरफ चल दी.
पाठको, मेरी यह लाइव देसी चूत चुदाई कहानी पढ़ कर आपको आनन्द मिला होगा.
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लाइव देसी चूत चुदाई कहानी का अगला भाग: देसी नौकर सेक्स कहानी

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